________________
१२ ]
प्रकीराक-पुस्तकमाला ఆ000 అందిఅee को नाम तन्न गतो दर्शन्यपि न तपसो भ्रश्येत् । एतद्गुरुवचन विलंध्य विद्यामदाध्मानो जालकुदालनि:श्रीएयादिभिः प्रभूतेश्च शिष्यैः परि. करितो महाराष्ट्रादिवा दिनो मृगन कर्णाटदेशमाप ।
तत्र विजयपुरे कुन्तिभोज नाम राजानं स्वयं विद्यविदं विद्वात्मिय सदसि निषरणं स द्वास्थनिवेदितो ददर्श । तमुपश्लोकयामास...!" इत्यादि ।
इस प्रबन्धमे दो लाते स्पष्ट है । एक तो गह मिलकीर्ति निश्चय ही एक ऐतिहासिक सुप्रसिद्ध विद्वान हैं और वे दिगम्बर विद्वान विशालकीर्तिके सुविख्यात एवं 'महाप्रामाणिकचूडामणि' की पदवी प्राप्त. वादिविजेता शिष्य थे तथा झन प्रवन्धकोशकार गजशेखरसूरि अर्थात विक्रम सं० १४.५ से पहले हो गये हैं। दूसरी बात यह कि वे विजयपुरनरेश कुन्तिभोजके समकालीन हैं। और उनकेद्वारा सम्मानित हुए थे।
अब देखना यह है कि कुन्तिभोजका समय क्या है ? जैन-साहित्य और इतिहासके प्रसिद्ध विद्वान् पं. नाथूरामजी प्रेमीका अनुमान है। कि प्रबन्धकोषवर्णित विजयपुरनरेश कुन्तिभोज और सोमदेव(शब्दार्णवचन्द्रिकाकार)-वर्णित वीरभोजदेय एक ही हैं। सामदेवमुनिने अपनी शब्दावचन्द्रिका कोल्हापुर प्रान्तके अर्जुरिका ग्राम में बादीभवनाश विशालकीर्ति परिडतदेवके वैयावृत्यसे वि० सं० १२६२में बनाकर समाप्त की थी। --.- - ---- १ देखो, जैनसाहित्य और इतिहास पृ० १३६ । २ देखो, उक्त ग्रन्थके पृ० १३८के फुटनोटमें उद्धृत शब्दावचन्द्रिकाकी अन्तिम प्रशस्ति ।
-
-