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________________ ( शान्तिसुधासिन्धु ) करनेवाली है। निश्चयनयसे जो कल्याण करनेवाला ध्याता है वही शांति और सूख देनेवाला ध्यान है, और वहीं अपना समस्त दोषोंसे रहित, मद, मत्सर आदि विकारोंसे रहित और सर्वोत्कृष्ट आत्मा ध्येयरूप है। ऐसा अपने आत्मजन्य आनन्दमें सन्तुष्ट रहनेवाले आचार्य मुगुमगारने गिल्ला किया हो : भावार्थ-- किसी भी पदार्थका चितवन करना ध्यान है, तथा उस चितवनको करनेवाला ध्याता कहलाता है, और जिस पदार्थका चितवन किया जाता है, उसको ध्येय कहते है। इस प्रकार इन तीनोंमें वाच्यवाचकभेदसे भेद है । ध्याताका वाच्य ध्यान करनेवाला है, ध्येयका वाच्य ध्यान करने योग्य पदार्थ है, और ध्यानका वाच्य चितवन करना है । इस प्रकार शब्दभेदसे भी अर्थभेद हो जाता है। यदि एक ही पदार्थक वाचक अनेक शब्द होते हैं, तो भी उनके अर्थ में कुछ न कुछ भेद अवश्य रहता है । जैसे इंद्र, शक्र, पुरंदर ये तीनों शद्धोंका अर्थ इंद्र है, परंतु यदि द्धिभेदसे अर्थभेद लिया जाय तो जो ऐश्वर्यशाली हो उसको इंद्र कहते हैं, जो अत्यंत समर्थ हो उसको शक कहते हैं, और जो पुर वा नगरको चलानेवाला हो उसको पुरंदर कहते हैं । इंद्र में ये तीनों अर्थ संघटित होते हैं, इसलिए ये तीनों शद्ध इंद्रके याचक कहलाते हैं । इसी प्रकार ध्याताका अर्थ ध्यान करनेवाला है, ध्यानका अर्थ ध्यान वा चितवन करना है, और ध्येय शहका अर्थ ध्यान करने योग्य पदार्थ है । परंतु जब यह शुद्ध आत्मा अपने ही आत्माके द्वारा अपने ही आत्माका ध्यान करता है, उस समय वही आत्मा ध्याता होता है. वही ध्येय होता है, और वही आत्मा चितवनरूप होता है । उस समय वह शुद्ध आत्मा अपने शुद्ध स्वरूपमें इस प्रकार लीन हो जाता है, और इस प्रकार उसमें निश्चल हो जाता है, कि फिर उसमें किसी प्रकारकी भेदबुद्धि नहीं रहती । मैं ध्याता हूं, ध्यान कर रहा है, इस प्रकारकी भेद-बुद्धि भी नहीं रहती। इसलिए उस निश्चल ध्यानमें ध्याता, ध्येय, वा ध्यानका कोई भेद सिद्ध नहीं होता । जो ध्याता है, वही ध्यान है, और वही ध्येय है, तथा ध्येय-ध्याताका संकल्प-विकल्प भी नहीं है, निर्विकल्प अवस्था है, इसलिए वहांपर किसी भी प्रकारसे भेद सिद्ध नहीं होता है, यही ध्याता, ध्यान, और ध्येयकी अभेद अवस्था मोक्षका साधन है। इस प्रकार आचार्य श्री कुंथुसागरने निरूपण किया है।
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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