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________________ ( शान्तिसुधासिन्धु ) महा विपत्ति आनेपर भी वे मनिराज उस अपने ध्यानसे चलायमान नहीं होते । पहले अनेक मुनियोंको पानीमें पेल दिया। मुनिराज गजकुमारके मस्तकपर अग्नीकी अंगीठी जलाकर रख दी, यधिष्ठिर आदि पाचों पांडव मुनियोंको लोहेके आभूषण गर्म करके पहना दिए, मुनिराज सूकुमारके शरीरको तीन स्यालिनियोंने मिलकर खा डाला, मुनिराज सुकोशल स्वामीको शेरनीने वा डाला, कितने ही मुनि नदियोंमें बहकर चले गए, परंतु कोई भी मुनि अपने ध्यानसे विचलित नहीं हुए । पहलेकी बात यदि छोड़ दी जाय तो इस समय में भी आचार्य श्रीशांतिसागरजीके शरीरपर भयंकर पर्वतीय सर्प बहुत देर तक फिरता रहा, परंतु वे भी अपने ध्यानसे चलायमान नही हुए । आनार्य सुधर्मसागरजीको क्षय रोग हो गया तो भी वे अपने ध्यान-अध्ययन वा ग्रंथ निर्माण कार्य से चलायमान नहीं हुए। इससे सिद्ध होता है कि मुनियोंके समस्त कर्तव्य अलौकिक होते हैं, और इसीलिए वे शीघ्र ही अपने आत्माका कल्याण कर लेते हैं। प्रश्न- ध्याता ध्यानं तथा ध्येयः ध्यानाङगाश्च त्रयोप्यमी । __ स्यात्मनः सन्ति भिन्ना बाभिन्ना मे वद सन्मुने ? अर्थ- हे स्वामिन् ! अब कृपाकर यह बतलाइए कि ध्याता, ध्येय, और ध्यान ये जो ध्यानके तीन अंग हैं, वे आत्मासे भिन्न हैं अथवा अभिन्न हैं। उत्तर - वाच्यवाचकमेवेन शहादा व्यवहारतः । ध्यातादित्रिविधस्यापि सम्यग्भेदा यथास्थिताः ॥ ध्याताविभेवबुद्धिर्न तत्त्वतस्तत्त्वनाशिनी । यो ध्याता शर्मदो ध्यानं तदेव शान्तिसौख्यदम् स्वात्मैव ध्येयरूपोस्ति निर्दोषो निर्मदोतुलः । प्रोक्तः स्वानन्दतुष्टेण सूरिणा कुंथुसिंधुना ।। १२६ ॥ अर्थ- ध्याता, ध्यान और ध्येय इन तीनोंमें वाच्य-वाचक भेदसे भेद है, शव भेदसे भेद है, और व्यवहार भेद हैं। अपने-अपने स्वरूपको लिए हुए ये तीनों भेद विद्यमान हैं, परंतु यदि यथार्थ रीतिसे देखा जाय तो यह ध्याता, ध्येय, और ध्यानरूप भेद-बुद्धि आत्मतत्त्वको नाश
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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