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( शान्ति सुधासिन्धु )
कर्मो से मुक्त होता है । इन दोनोंमें से कौनसा आत्मा कर्मोसे मुक्त होता है ?
उत्तर - यः कोपि बद्धः स च मुच्यते हि, दुःखप्रदात्कर्म कलंकजालात् । निर्बन्धजीवो न च लुच्यते हो,
यो मन्यते मूर्खशिरोमणिः सः ॥ १०३ ॥ ]
"रागादिभावेन भवप्रवेन,
नोकर्मा द्रव्यमलेन बद्धः ।
स मुच्यते प्राप्य विधि च तेन,
नो चेद् वृथा मोक्षविधेविधानम् ।। १०४ ॥ ]
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अर्थ- इस संसारमें जो जीब महादुःख देनेवाले कर्मरूपी कलंकके जालसे बंधा हुआ है, वही जीव उस कर्मरूपी जालसे मुक्त हो सकता है । जो जीव बन्धा ही नहीं वह भला किससे मुक्त होगा अर्थात् जो बन्धा हुआ नहीं है, वह मुक्त नहीं हो सकता । जो लोग बन्धरहित जीवको भी मुक्त होना मानते हैं, वे अज्ञानी हैं, वा अज्ञानियों में भी मूर्ख हैं । जो जीव जन्म मरणरूप संसारको बढानेवाले रागादिक भावोंसे बन्धे हुए हैं, वा ज्ञानावरणादिक द्रव्यकमोंसे बन्धे हुए हैं अथवा शरीरादिक नोकमोंसे बन्धे हुए हैं, वे ही विधिपूर्वक उन कर्मोको नाश कर उनसे मुक्त हो सकते हैं । यदि ऐसा न माना जाय तो मोक्षको मानना अथवा मोक्ष प्राप्त करनेके उपायोंको मानना सर्व व्यर्थं मानना पडेगा 13
भावार्थ - मोक्ष शब्द का अर्थ छूटना है। छूटता वही है जो बंधा होता है। जो बंधा हुआ नहीं है वह छूटा ही है, उसका फिर छूटना क्या ? यदि छूटा हुआ वा मुक्त जीव भी फिरसे मुक्त होता है, तो फिरसे मुक्त हुआ जीव भी फिर मुक्त होना चाहिये, और वह भी फिर मुक्त होना चाहिये । इस प्रकार मुक्त होनेसे भी उसको कभी विश्रांति नहीं मिल सकती, इसको अनवस्था दोष कहते हैं, दूसरी बात यह है कि यह जीव अनादिकालसे कमसे बंधा रहा है, और