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________________ ( शान्तिसुधासिन्धु ) - उत्तर - निःशंकवत्तिय जिमोक्तमार्ग, स्वर्मोक्षदे स्याद्गुरुदेवशास्त्रे । सतः प्रवृत्तिर्व्यवहारकायें यदा तदा स्याच्च विचारशीला ॥ ५३॥ . सशंकवृत्तिर्गुरुदेवशास्त्र, जिनोक्तमार्ग विपरीतबुद्धिः। खलस्य लीला भुवि तद्विरुद्धा, ततः सुबुद्धि जिन ! देहि तस्मै ॥ ५४ ॥ अर्थ- सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्ररूप भगवान् जिनेन्द्रदेवके कहे हुए मोक्षमार्ग में तथा मोक्ष देनेवाले देव शास्त्र गुरुमें सज्जन पुरुषोंकी प्रवृत्ति, सदा निःशंकरूप रहती है । तथा जब कभी व्यवहार में प्रवृत्ति होती है तब भी विचार पूर्वक होती है । परन्तु दुष्ट ! पुरुषोंकी प्रवृत्ति देव शास्त्र गहमें भी सशंकित बनी रहती है और । रत्नत्रयरूप मोक्षमार्गमें उस दुष्टकी प्रवृत्ति विपरीतरूप ही रहती है। इस प्रकार दुष्ट पुरुषोंकी लीला इस संसारमें सदा विरुद्ध ही रहती है । हे । भगवन् ! उन दुष्ट पुरुषोंको आप सुबुद्धि प्रदान करें । भावार्थ- यहांपर सज्जन पुरुषोंके कहने से सम्यग्दृष्टी पुरुष ' समझना चाहिए । सम्यग्दृष्टी पुरुषोके सम्यग्दर्शनरूप.एक विचित्र अमूर्त . प्रकाश प्रगट हो जाता है, जो. आत्माके अथार्थ स्वरूपको दिखला देता । है । आत्माका यथार्थ स्वरूप प्रकट हो जानेके कारण सज्जन पुरुषोंकी बुद्धि आत्मस्वभावके अनुकूल ही रहती है। इसलिए वे आत्माके शुद्धस्वरूपको भी समझते हैं, देव शास्त्र गुरुके स्वरूपको भी समझते हैं और सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान तथाः सम्यकचारित्ररूप मोक्ष मार्गको भी समझते हैं । इसीलिए वे सम्यग्दृष्टी पुरुष. रत्नत्रयरूप मोक्षमार्गमें कभी किसी प्रकारको शंका नहीं करते और न देव शास्त्र गुरुमें किसी प्रकारकी शंका करते हैं, वे सम्यग्दृष्टी पुरुष भगवान अरहन्तदेवको ही देव मानते हैं, वीतराग निर्ग्रन्थ गुरुको ही गुरु मानते हैं और भगवान जिनेन्द्रदेवकी कही हुई वाणीको ही शास्त्र मानते हैं। ऐसे पुरुष व्यवहारके कार्योको भी बहुत विचारके साथ करते हैं, हिंसादिक पापोंसे सदा डरते हैं और -- -
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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