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________________ ( शान्तिसुधाशिन्ध ) पुण्यनिधि कहलाता है । पापोंका नाश करनेके कारणही पुनीत, वा पवित्र कहलाता है। यह आत्मा समस्त तत्त्वोंमें सर्वोपरि माना जाता है, इसलिए इसको महान् कहते हैं। यह आत्मा उपादेय है, सर्वथा ग्रहण करने योग्य है, इसलिए इसको मनोज्ञ कहते हैं । इस आत्माने काम, क्रोध आदि सब अंतरंगशत्रु नष्ट कर दिये हैं, इसलिए इसको छहों अंतरंग मोजो नाश पारनेवाः। कही। मह जारमा समस्त प्राणियोंका स्वामी है इसलिए भूतनाथ वा प्राणियोंका स्वामी काहलाता है । तीनों लोक इसको नमस्कार करते हैं अथवा तीनों लोकोंके इन्द्र इसको नमस्कार करते हैं, इसलिए इसको भुवनेशवंद्य कहते हैं। यह आत्मा तीनों लोकोंका गुरु वा शासक है, इसलिए जगत्गुरु कहा जाता है । जिसप्रकार सूर्यके उदय होनेसे कमल खिलते हैं, उसी प्रकार इस पवित्र शुद्ध आत्मासे समस्त भव्यजीव प्रफुल्लित होते हैं, इसलिए इसको भन्यसरोजभानु वा भव्यजीवरूपी कमलोंका सूर्य कहते हैं । यह आत्मा राग द्वेषादिक समस्त दोषोंको नाश करनेवाला है इसलिए प्रक्षीणदोष वा दोषोंको नाश करनेवाला कहलाता है । यही आत्मा समस्त जीवोंको शांति उत्पन्न करनेवाला है, इसलिए इसको समद वा परिणामोंको शांत करानेवाला कहते हैं । यह आत्मा स्वयं शांत है इसलिए शमात्मा वा अत्यन्त शांत कहलाता है । यह आत्मा सदाकाल अपने आत्माके शुद्ध स्वरूपका चितवन करता रहता है. इसलिए मुनि कहलाता है, तपश्चरण और ध्यानके द्वारा अपने आत्माको पवित्र करता हुआ यह आत्मा अणिमा, महिमा आदि अनेक ऋद्धियोंको प्राप्त कर लेता है, इसलिए इसको महषि कहते है। यह आत्मा पापको नाश करने तथा महापुण्य कर्मोको धारण करने के कारण सुविधा वा श्रेष्ठ पुण्यकर्मोको धारण करनेवाला कहलाता है। अथवा मोक्ष प्राप्त करने के लिए ध्यान, तपश्चरण आदि श्रेष्ठ क्रियाओंको करता है, इसलिएभी सुविधि कहलाता है। यह आत्मा श्रुतज्ञान का भंडार है, इसलिए श्रुतात्मा वा श्रुतज्ञानस्वरूप कहलाता है । इसप्रकार अनेक उत्तम गुणोंको धारण करनेवाला यह मेरा आत्मा सर्वथा ध्यान करने योग्य माना जाता है। आगे अपने आत्माका स्वरूप और भी दिखलाते हैंक्षमापति नरविर्दमेशः कारिजेता निजराज्यदाता । स्थानन्दसाम्राज्यविभुः कृपेशो दिगम्बरोऽनन्तगुणात्मकोहम् ॥
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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