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________________ ( मान्तिसुधासिन्धु) स्वामी धनेश कहलाता है, ध्यानमें निमग्न रहने के कारण ध्यानी माना जाता है, अनेक भव्य जीवोंको धर्मोपदेश देनेके कारण प्रदानी कहा जाता है, अपने आत्माको अनंतसुख पहुंचाने के कारण निपुण माना जाता है, तीनों लोकोंका स्वामी होनेके कारण नरेश कहा जाता है. अपने आत्मजन्य आनंदका उपभोग करने के कारण वा अनंतसुखका अनुभव करने के कारण आनंदभोक्ता कहलाता है, और इन सब उत्तम गुणोंको धारण करने के कारण चतुर पुरुषों में भी सर्वोत्तम कहलाता है। ऐसा यह आत्मा सदाकाल ध्यान करने योग्य माना जाता है। ___ आगे इसी आत्माके स्वरूपको और भी बतलाते हैंजयी जिनेन्द्रो ह्यजितो जितारिः बंद्योऽभिनंधो सुमतिः सुयोग्यः । गणाधिपः पुमानिधिः पुनको गहान् मानगो हतषड्रिपुश्च ॥ श्रीभूतनाथो भुवनेशवंद्यो जगद्गुरु व्यसरोजभानुः । प्रक्षीणदोषः शमदः शमात्मा मुनिमहर्षिः सुविधिः श्रुतात्मा ॥ अर्थ- यह मेरा आत्मा तोनों लोकोंको जीतनेवाला है, अथवा तीनों लोकोंको जीतनेवाला काम और मोहकोभी जीतनेवाला है, घातिया कर्मोको जीतनेवाले जिन कहलाते हैं, उसके इन्द्र का स्वामीको जिनेन्द्र कहते हैं, मेरा यह आत्माभी जिनोंमें श्रेष्ठ है, इसलिए जिनेन्द्र काहलाता है। इस संसारमें मोह वा काम बा अन्य इन्द्रादिकदेव कोईभी इस आत्माको जीत नहीं सकते, इसलिए यह आत्मा अजित कहलाता है । इस संसारमै काम मोह वा ज्ञानावरण आदि कर्मही शत्रु हैं। उनको जीतनेवाला यह मेरा आत्मा है, इसी कारण मेरा यह आत्मा जितारि कहा जाता है। मेरा यह पवित्र आत्मा, निर्मल, शुद्ध तीनों लोकोंकेद्वारा वंदनीय और अभिनन्दनीय है, इसीलिए वंद्य और अभिनंद्य कहलाता है, यह मेरा आत्मा श्रेष्ठ केवलज्ञानको धारण करनेवाला है, वा अपने आत्माका कल्याण करनेवाला है, इसलिए इमीको सुमति बा श्रेष्ठ बुद्धिवाला कहते हैं । मोक्षके सर्वथा योग्य यही पवित्र आत्मा है, इसलिए इसको सुयोग्य कहते है । यह आत्मा समस्त भव्यगुणोंका स्वामी है इसलिए इसको गणाधिप वा गणका नायक कहते हैं। यह आत्मा समस्त पापोंको नाश कर, गुण्य कानिधि बन जाता है इसलिए
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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