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________________ ( शान्तिसुधासिन्धु ) विकारोंसे रहित है, इसलिए त्रिविकारहारी वा तीनों विकारोंसे रहित कहलाता है। कापलार यह सुल स्मिानहरूा मेरा आत्मा सर्वोत्कृष्ट गुणोंको धारण करनेवाला है, आगे अपने आत्माका स्वरूप और भी दिखलाते हैकलानिधिः केवलबोधसिंधुनिःस्वार्थमूतिजितकर्मबन्धः । समाधिमंत्रः समतासमुद्रो वमीश्वरो विस्मयरूपधारी ॥५११॥ धीमान् मनीषी सुजनः सुशीलो ज्ञानी च मौनी धनदो धनेशः । ध्यानी प्रदानो निपुणो नरेशः स्वानन्दभोगी चतुरोत्तमोहम् ॥ __ अर्थ- यह मेरा आत्मा अनेक कलाओंका निधि है, केवलज्ञानरूपी महाज्ञानका सागर है, वह स्वार्थोसे रहित है, उसके किसी प्रकारकी इच्छा नहीं है, इसलिए वह निस्वार्थकी मूर्ति कहलाता है, समस्त कर्मोको जीतनेवाला, वा नष्ट करनेवाला है, वा कर्मबंधन को रोकनेवाला है, इसलिए कर्मबंधनको जीतनेवाला कहा जाता है, । समाधि वा ध्यान में लीन रहता है, अतएव समाधितंत्र कहलाता है, दुःख-सुख आदि सबसे समता धारण करता है, और परम समताका समुद्र माना जाता है, इंद्रियोंको दमन करनेवालोंमें भी मुख्य वा स्वामी कहलाता है, । इसलिए इसको दमीश्वर कहते हैं यह आत्मा तीनों लोकोंमें आश्चर्य उत्पन्न करनेवाली अपने आत्माकी अनंन चतुष्टयरूप विभूतिको धारण करता है । अतएव आश्चर्य करनेवाले रूपको धारण करने वाला कहलाता है। यह आत्मा समस्त पापोंका त्याग कर, अपने आत्माका कल्याण कर लेता है इसलिए बुद्धिमान और मनीषी वा विचारवान कहलाता है, जीवोंका कल्याण करता है, किसीका अहित नहीं करता है, अतएव सुजान कहलाता है, आत्माके अनंत गुणोंको धारण करनेवाला है, इसलिए सुशील कहा जाता है. आत्माका यथार्थ स्वरूप जानने के कारण ज्ञानी कहलाता है, किसीसेभी बातचीत नहीं करता, केवल अपने आत्मामें लीन रहता है. इसलिए मौनी बा मौन धारण करनेवाला माना जाता है, यह आत्मा मोक्षमार्गका निरूपण कर, अनेक भव्यजीवोंको अनंतचतुष्टायरूप महालक्ष्मीकी प्राप्ति करा देता है, तथा स्वयं भी अनंतचतुष्टयरूप लक्ष्मीको धारण करता है, इसलिए धन देनेवाला धनद और धनका
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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