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( शान्तिसुधामिन्धु ) -- सीताके पवित्र शील में रतीभर भी मलिनता नहीं ला सका था। अपने पवित्र शीलके पालन करने में वह सीता सुमेरु पर्वतके समान अचल रही थी तथापि उस रावणको केवल कामदेवकी कामवासनामाप्रसे ही नरकम । जाना पड़ा था और अब तक वहांके घोर दुःस्व सहन कर रहा है। कामदेवकी वासनामात्रसे इस जीवको घोर दुःख सहन करने पड़ते हैं | और रावणके समान युगयुगांतर तक अपकीर्ति बनी रहती हैं। इस कानदेषकी बाननानासे हो राम रावणका घोर युद्ध हुआ था और इसीक कारण कृष्ण शिशुपालका युद्ध हुआ था, कहां तक कहा जाय यह कामदेव भाई-भाइयोंमें, पिता-पुत्रमें, मा-बेटोंमें और न जाने कितने कितने सगे-सम्बन्धियोंमें वर-विरोध करा देता है । यह निश्चित है कि जहांपर कामदेवकी वासना रहती है वापर आत्माके कोई भी उत्तम गुण नहीं रह सकते । यद्यपि रावण महा विद्वान् था तथापि कामदेवकी वासनामासे ही उसके शांति दया क्षमा आदि गुण सब नष्ट हो गये थे। और तो क्या सीताका अपहरण होने पर रामचन्द्र जैसे आदर्श महापुरुष भी अत्यंत विव्हल हो गये थे और इतने विव्हल हो गये थे कि वक्षोंतकसे सीताकी खबर पूछने लगे थे । इससे सिद्ध होता है कि यह कामदेव : बड़े-बड़े महापुरुषोंसे भी बड़ी कठिनतासे जीता जाता है । जो शूरवीर । महापुरुष इस अकेले कामदेवको जीत लेता है वह पुरुष अवश्व ही : आत्माके समस्त गुणोंको धारण करता हुआ मोक्ष प्राप्त कर लेता है। . इसलिए इस कामदेवकी वासनाको हटाकर आत्माके शुद्ध स्वरूपमें लीन होना ही मोक्षका सर्वोत्तम उपाय है ।
प्रश्न- तृप्तः स्यात्कामभोगैश्च प्रभो मे वद मानव: ?
अर्थ- हे भगवन् ! कृपाकर यह बतलाइये कि यह मनुष्य इस । कामदेबसे कभी तृप्त भी होता है वा नहीं ? उत्तरमवीसहस्रेहदधिश्च तृप्तः, .
स्यावेव वन्हिस्तृणकाष्ठतैलेः।। तोयं तथाधो गमनेन पापी, लोभी धनः पापशतेन धूर्तः ॥ ५१॥ ।