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________________ - - ( शान्तिसुधासिन्ध ) प्रश्न- कीदृक् कामपिशाचोस्ति तदोधाय गुरो ! वद ? । अर्थ- हे भगवन् ! अब मुझे यह बतलाइए कि यह कामरूपी पिशाच्च कैसा है ? उत्तर - समस्तसंतापविवर्द्धकश्च, स्थर्मोक्षमार्गाविनिरोधकारी। भवप्रवो वरविरोधकर्ता, क्षमाकृपाशान्तिदयापलापी ।। ४९ आद्यन्तमध्ये खलवघ्यथाः, एतादृशः कामपिशाचवर्गः । तभेदभावाविविवा नरेण, केनात्मनाशाय सुरक्ष्यते सः ॥ ५० ॥ अर्थ-(यह कामरूपी पिशाच्चोंका समूह संसारके समस्त संतापोंको बढ़ानेवाला है, स्वर्ग वा मोक्षके मार्गको रोकनेवाला है, जन्म-मरणके महा दुःखोंको देनेवाला है, सबके साथ वैर विरोध करनेवाला है, आमा कृपा शांति दया आदि आत्माके स्वाभाविक गुणोंका नाश करनेवाला है। और आदि मध्य अंत तीनों अवस्थाओंमें दुष्ट पुरुषके समान महा दःख देनेवाला है । इस प्रकारके इस कामदेवके भेद वा हावभाव आदिके जाननेवाले ऐसे कौन मनुष्य हैं जो अपने आत्माका नाश करनेके लिए इस कामदेवकी रक्षा करें अर्थात् कोई नहीं । भावार्थ- संसारमें समस्त आपत्तियोंका मूल कारण वा समस्त दुःखोंका मूल कारण यह कामदेव ही है । जिस मनुष्यके हृदय में कामवासना बनी रहती है उसका मन सदाकाल अपवित्र और मलिन रहता है तथा उस अपवित्र और मलिन मनसे फिर किसी भी धर्मकार्यको वह नहीं कर सकता । फिर उससे न तो पुण्यका कोई साधन बनता है और न मोक्षका कोई साधन बनता है । फिर तो वह उस अपवित्र और मलिन मनसे सदाकाल पाप ही उत्पन्न करता रहता है और उन पापोंके फलसे नरकादिकके घोर दुःख सहन किया करता है । देखो इमी कामकी तीन वासनासे रावणने सीताका हरण किया था । यद्यपि वह परम सनी
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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