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________________ (शान्तिसुधासन्धु ) अथ भाव-परिवर्तनका स्वरूप कहते हैं । अनंत परिणामोंके द्वारा संसारमें परिभ्रमण करना, भावसंसार वा भावपरिवर्तन कहलाता है । यह जीव कर्मोकी स्थिति के कारण संसारमें परिभ्रमण करता है, स्थिति के लिए कषायाध्यवसायस्थान कारण होते हैं । कषायाध्यवसायके लिए अनुभागस्थान कारण होते हैं । अनुभागस्थानके लिए योगस्थान कारण होते हैं | स्थितिके उत्कृष्ट, मध्यम, जघन्य, आदि अनेक भेद हैं, इसलिए उसके कारणभूत कषायाध्यवसाय, अनुभागाध्यवसाय, ओर योगाध्यवसाय भी अनेक भेद होते हैं । उत्कृष्ट स्थितिके लिए उत्कृष्ट कायाध्यवसाय आदि कारण हैं, और जघन्य स्थिति के लिए जघन्य कषायाध्यवसाय आदि कारण हैं। मानलो कि संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक मिथ्यादृष्टि जीवने भावपरिवर्तन प्रारम्भ किया। उसके ज्ञानावरणकर्मको जघन्य स्थिति अंत: कोडाकोडी सागर पड़ती है, ( एक करोडको एक करोडसे गुणाकर देनेसे कोडा - कोडी होता है, कोडा-कोडी सागर मे कुछ कम स्थितिको अंत: कोडा- कोडी सागर कहते हैं, ) उसकी उस जघन्य स्थिति के लिए असंख्यात लोकपरिमाण कषायाध्यवसायस्थान कारण होते हैं । (स्मरण रहे कि एक-एक कषायाध्यवसायस्थान अनन्तानन्त अविभागी परिच्छेद होते हैं, और वे षट्स्थानपतित हानिवृद्धिरूप होते हैं ) एक- एक कषायाध्यवसायस्थानके लिए असंख्यात - लोकप्रमाण अनुभागाध्यवसायस्थान कारण होते हैं, एक-एक अनुभागाध्यवसाय स्थानके लिए श्रेणीके असंख्यात भागपरिमाणयोगस्थान कारण होते हैं । अभिप्राय यह है कि, जघन्यस्थितिके लिए जैसा जघन्ययोगस्थान चाहिए उनमें से एक हुआ, फिर चतुःस्थान वृद्धि हानि रूप होता हुआ दूसरा हुआ, फिर तीसरा हुआ । इसप्रकार जब उनकी संख्या श्रेणी असंख्यातवे भागपरिमाण हो जाती है, तत्र तक अनुभागाव्यवसायस्थान होता है । फिर इसीप्रकार श्रेणीके असंख्यात बेभागपरिमाणयोगस्थान हो जाते हैं, तब दूसरा अनुभागाध्यवसायस्थान ३३६ ता हैं । इसप्रकार जब असंख्यातलोकपरिमाण अनुभागाध्यवसायस्थान हो जाते हैं, तब एक कषायाध्यवसायस्थान होता है। फिर इसी क्रमसे श्रेणी असंख्यात भागपरिमाणयोगस्थानोंसे एक अनुभागाध्यवसाय - स्थान होता है, और इसी क्रमसे असंख्यात लोकपरिमाण अनुभाग- }
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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