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________________ ( शान्तिसुधासिन्धु ) P जन्म ले । तदनंतर परिभ्रमण करता हुआ एक समय अधिक अंतर्मुहूर्तकी आ पाकर तिच योनिमें जन्म ले, फिर दो समय अधिक अंतर्मुहूर्तकी आयु पाकर जन्म ले । इस प्रकार एक-एक समय अधिक आयु पाकर तिर्यंच योनिको तीन पल्यको आयुको पूर्ण करें। इसी प्रकार मनुष्य योनि में अंतर्मुहूर्त की आयु पाकर जन्म ले, फिर परिभ्रमण कर दुबारा अंतर्मुहूर्तकी आयु पाकर जन्म ले । इसप्रकार अंतर्मुहूर्तके जितने समय होते हैं, उतनी बार अंतर्मुहूर्तकी आयु पाकर मनुष्ययोनिमेंही जन्म ले । फिर एक समय अधिक अंतर्मुहूर्तकी आयु पाकर मनुष्ययोनिमें जन्म ले, फिर दो समय अधिक अंतर्मुहूर्तकी आयु पाकर मनुष्य हो । इस प्रकार अनुक्रमसे एक-एक समय वधिक आयु पाकर सोदिको दीन पत्यकी आयुको पूर्ण करे । मध्यकालमें क्रमप्राप्त आयुसे हीनाधिक आयु पाकर, तिच वा मनुष्य होना इस परिवर्तनमें शामिल नहीं है । इस प्रकार जब तिर्यंच योनि और मनुष्य योनिकी समस्त आयुको अनुक्रमसे एक-एक समय बढाकर पूर्ण कर ले, तब देवगतिमें दस हजार वर्षकी आयु पाकर जन्म ले । फिर परिभ्रमण कर दस हजार वर्षकी आयु पाकर, दुबारा देवयोनि में जन्म ले । फिर परिभ्रमण कर तीसरी बार दस हजार वर्षकी आयु पाकर देव हो । इस प्रकार दस हजार वर्षके जितने समय होते हैं, उतनीही बार दस-दस हजार वर्षकी आम् पाकर देव योनिमें उत्पन्न हो । तदनंतर परिभ्रमण करता हुआ एक एक समय अधिक दस हजार वर्षकी आयु पाकर देवयोनि में जन्म ले 1 फिर दो समय अधिक हजार वर्षकी आयु पाकर जन्म ले । इस प्रकार देव योनि के इकतीस सागरकी आयुको पूर्ण करे । मध्यकाल में क्रमप्राप्त आयुसेहीनाधिक आयु प्राप्त कर देव होना इसमें शामिल नहीं है। इस प्रकारके इस महापरिभ्रमणको भवपरिवर्तन कहते हैं । इसमें इतना और समझ लेना चाहिए कि नवग्रैवेयककी उत्कृष्ट आयु इकतीस सागर है, तथा संसारमें परिभ्रमण करनेवाले मिथ्यादृष्टि जीव नवग्रैवेयक तकही जाते हैं । इसलिए इस परिभ्रमणमें इकतीस सागरही ग्रहण किए हैं। नवग्रैवेयकसे ऊपर नौ अनुदिश तथा सर्वार्थसिद्धि आदि पत्रोत्तर में सम्यग्दृष्टि जीवही उत्पन्न होते हैं, और वे एक या दो भवमेंही मोक्ष चले जाते हैं। इसलिए उनकी बनीस या तेहतीस सागर की आयु इस में नहीं ली गई है । I 1 ३३५
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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