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________________ ( शान्तिसुधासिन्धु ) ३१५ विचार करते हैं वैसा ही वचनसे कहते हैं, तथा विना किसी छल कपटके शरीरसे वैसा ही कार्य करते हैं, इसके सिवाय वे पुरुष अपने आत्माकी गहों और निदा करते रहते है, और समस्त जीवोंको संतुष्ट करनेवाली तथा परस्परकी या वा द्वषको दूर करनेवाली, अन्य जीवोंकी प्रशंसा भी किया करते हैं। यदि इन सब कार्योको करते हुएभी आत्मामें परम शांति प्राप्त न हो, तो फिर जिसप्रकार सूर्यके विना दिन शोभायमान नहीं होता, उसीप्रकार शांतिके विना मन वचन कायकी वह सरलताभी शोभायमान नहीं होती। भावार्थ- मन वचन कायकी सरलता शांतिका सर्वोनम कारण हैं । जो पुरुष मन वचन कायकी सरलता नहीं रखता, मनमें कुछ सोचता है, वचनसे कुछ कहता है, और शरीरसे कुछ करता है, तो वह रात-दिन मायाचारी करता रहता है । कहीं वह मायाचारी प्रगट न हो जाय, इसके लिए वह सदा व्याकुल रहता है। उस व्याकुलतामें कभी शांति प्राप्त नहीं हो सकती । अतएव उस व्याकुलताको दूर करने के लिए और आरमामें परम शांति धारण करने के लिए मन, वचन, कायकी कुटिलना दूर कर, मन, वचन, कायमें सरलता धारण करनी चाहिए । जिसका मन, वचन, काय सरल रहता है, उसको कभी किसीका भर नहीं रहता, इसलिए वह निराकुल और शांत रहता है । इसके सिवाय जिसका मन, बचन काय सरल होता है वह सदाकाल अपने आत्माकी गर्दा वा निंदा करता है, तथा दूसरोंकी प्रशंसा करता है । इसप्रकार अपनी गर्दा वा निंदा करनेसे तथा दूसरोंकी प्रशंसा करनेसे सब लोग संतुष्ट हो जाते हैं, तथा सब लोगोंको संतोष होनेसे आत्मामें परम शांति प्राप्त होती है। यदि उत्तम मनुष्यजन्म पा करकेभी मन बचन कायकी सरलता धारण नहीं की, तथा अपनी गर्दी निंदा वा परप्रशंसा नहीं की, और इन कार्योंके द्वारा अपने आत्मामें परमशांति धारण नहीं की तो फिर उसका मनुष्यजन्म व्यर्थही समझना चाहिए । जिसप्रकार सूर्यके विना दिनकी शोभा नहीं होती, यदि सूर्य बादलोंमें छिप जाता है तो वह दिन दुदित कहलाता है, उसीप्रकार विना मन वचन कायकी सरलता और शांतिके, मनुष्यजन्म कुजन्म कहलाता है. अयवा वह
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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