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________________ । शान्तिसुधासिन्धु ) भावार्थ- इस संसारमें आत्माकी परम शांतिको घात करनेवाला ममत्व है, माया है, राग है, द्वेष है, और कुबुद्धि है । गे ममत्वादि सब विकार आत्मामें आकुलता और दुःख उत्पन्न करनेवाले हैं । जहा आकुलता और दुःख होता है, वहांपर शांति कभी नहीं हो सकती । इसलिए शांति प्राप्त करनेके लिए प्रत्येक भन्यजीव को इनका त्याग कर देना चाहिए। इन सवका त्याग करनेसे आत्मामें परम शांति अवश्य प्राप्त होती है । इन सबका त्याग करनेके अनंतर चितवन करना चाहिए की यद्यपि मैने राग-द्वेष, माया, ममत्व आदिका सर्वथा त्याग कर दिया है, तथापि यदि किसी प्रमादके कारण मुझसे किसी जीवकी विराधना हई हो तो मैं उससे क्षमा मांगताहं । वह मुझे क्षमा कर दे, तथा अपने हृदयमें विशेष शांति धारण करने के लिए मैं भी समस्त जीवींको क्षमा कर देता हूं, और इसप्रकार अपने मनको शुद्ध कर लेता हूं। इसप्रकार मनको शुद्ध करनेसे तथा राग द्वेषादिका त्याग कर देनेसे परम शांतिकी प्राप्ति अवश्य होती है। यदि इनका त्याग करनेसेभी परम शांति प्राप्त न हो तो, समझना चाहिए कि वह सब त्याग मिथ्या है । ऐसा त्याग कभी सुशोभित नहीं हो सकता । अतएव इन सब विकारोंका त्याग कर अपने आत्मामें परम शांति धारण कर, अपने आत्माका परम कल्याण कर लेना प्रत्येक भव्य जीयका परम कर्तव्य है । प्रश्न- मनोवचःसुकायेषु किमर्थं किमाप्नुयात् । अर्थ- हे भगवन् ! अब कृपाकर यह बतलाइए कि मन-वचनकायमें जो एकता धारण की जाती है, अर्थात् जो मनमें मोचा जाता है, वही बचनसे कहा जाता है, और वहीं शरीरसे किया जाता है सो क्यों किया जाता है, किसलिए किया जाता है ? उ.-यथैव चित्ते वचसा तथैव निगद्यते केतवहीनकायः। निजान्यशान्त्य क्रियते च कृत्यं गर्हापि निदात्मन एव नित्यम् ॥ परप्रशंसाखिलतोषदात्री मिथोपि चेषादिविनाशको। पूर्वोक्तरोतिर्यदि चेन्न चैव नृत्वं वृथाहश्च विना सुमानुम् ।।' अर्थ-इस संसारमें अपने आत्मा परम शांति प्राप्त करने के लिए नथा अन्य जीवोंमें शांति प्राप्त करनेके लिा महापुरुष जैसा मनम
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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