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________________ ( शान्तिसुधासिन्धु) पंचाक्षसन्तोषकरं ह्यपीह सुखं च हेयं हृदि मन्यते वै । यथा चकोरः खलु चंद्रहीनो ज्ञात्वेति शांतिहृदि धारणीया । अर्थ-जिसप्रकार चकोर पक्षी चंद्रमाके बिना अपने समस्त सुखोंको हेय बा त्याग करने योग्य समझता है । उमीप्रकार सम्यग्दृष्टी पुरुषभी आत्मामें परम शांति धारण किए बिना चिंतामणि रत्नसे उत्पन्न होनेवाले सुखोंको, श्रेष्ठ कल्पवृक्षोंसे उत्पन्न होनेवाले सुखोंको, उत्तम भोगभूमिमे उत्पन्न होनेवाले सुखोंको, महाराज नबसी, इंद्र, छल आदिके मुखोंको, पांच इंद्रियोंको मंतुष्ट करनेवाले सूखोंकोभी अपने हृदयमें हेय बा त्याग करने योग्य समझता है । यही समझकर ममस्त भव्यजीवोंको अपने हृदय में परम शांति धारण करनी चाहिए। भावार्थ- यदि बास्तबमें देखा जाय तो जिसमें किसी प्रकारकी आकुलता न हो, उसीको सुख कहते हैं । जिस सुखके होनेमें आकुलता बनी रहे वा नवीन-नवीन आकुलताएं उत्पन्न होती रहे. उन मुखोंको कभी उत्तम और यथार्थ सूख नहीं कह सकते । आत्म शांतिमही निराकुलता प्राप्त होती है । जहां-जहां आत्मामें शांति है, वहां-वह परमसुख प्राप्त होता है, तथा जहां शांति नहीं है, वहां कभी सुख प्रान्त नहीं हो सकता। इसलिए शांतिकेबिना चाहे कंमेही उत्तमसे उत्तम सुख हो, वे सब दुःखही होते हैं, और सम्यग्दृष्टी पुरुष सदाकाल उनको दुःखही मानता है । इसका भी कारण यह है की, सम्यग्दृष्टी पुरुषको अपने आत्माके शुद्ध स्वरूपका अनुभव होता है, तथा उसके हृदयम स्वपरभेदविज्ञान प्रगट हो जाता है। इन्हीं सब कारणोंसे वह सम्यग्दृष्टी पुरुष अपने आत्माके शुद्ध स्वरूपसे भिन्न, अन्य समस्त पदार्थोंका त्याग कर देता है, समस्त विभावभावोंका त्याग कर देता है, और इंद्रियजन्य समस्त सुखोंका त्याग कर देता है। इन सबका त्याग कर वह अपने आत्माक शुद्ध स्वरूपमें लीन होनेका प्रयत्न करता है। आत्माके शुद्ध स्वरूपमें लीन होनेसे, उसे परमशांति प्राप्त होती है, और वह उस परमशांतिसे, परमसुख प्राप्त कर लेता है । अतएव समस्त भव्य जीवोंको अपने आत्मामें परमशांति प्राप्त कर, अनंतसूख प्राप्त कर लेना चाहिए । यही आत्माका परम कल्याण है।
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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