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________________ (शान्तिसुधाधु ) सिवाय मद्य अनेक जीवोंका कलेवर होता है, और उसमें प्रतिक्षण अनेक जीव उत्पन्न होते रहते है, इसलिए ऐसे मद्यका त्याग कर देनेसे आत्मामें महाशांति उत्पन्न होती है । वेश्या सेवन अनेक अनर्थोंको जड है, वेश्या मद्य-मांसका सेवन करती है, उसके मुंहसे मुंह लगाना महापाप है, वेश्यासेवन करनेवालेका सूतक - पातक कभी नष्ट नहीं हो सकता, और वेश्या सेवन करनेवालेके कोई उत्तम विचार नहीं हो सकते । इसलिए ऐसे वेश्यासेवका त्याग करना सुख और शांति दोनोंका कारण है । शिकार खेलना संकल्पी हिंसा है । हिरण आदि वनके जीव किसीका कुछ नहीं बिगाडते, केवल घास खाकर रहते है, ऐसे निरपराधी जीवों को जानबूझकर या धोखा देखकर भारना सबसे बड़ा पाप है। ऐसे पो बचने के लिए तथा आत्मामें शांति प्राप्त करनेके लिए विकारका त्याग करना आवश्यक है। चोरी करना दूसरेकी हत्या करना है, क्योंकि जिसकी चोरी होती है, वह यही कहकर सोता है कि जीते जी तो हमारी चोरी कोई नहीं कर सकता। इससे साबित होता है कि गृहस्थलोग अपने धनको प्राणोंसे भी अधिक प्रिय मानते हैं। ऐसे धनको जो चुरा लेता है, वह उसके प्राणोंकोही हर लेता हूं ऐसा समझना चाहिए। चोरी करनेवाला महापाप उत्पन्न करता है और पकड़ा जाता है, तो महादु:ख पाता है । इसलिए इसका त्याग कर देनेसे महाशांति उत्पन्न होती है । परस्त्री सेवन करने में बड़ी आकुलता रहती है, तथा उस स्त्रीके घरवाले उसके शत्रु बन जाते हैं । कभी-कभी तो परस्त्री सेवन करनेवाले उस स्त्रीके कारणही मारे जाते हैं । इसलिए ऐसे परस्त्रीका त्याग करना महाशांतिका कारण है। इस प्रकार सातों व्यसनों का त्याग कर देनेसे आत्मशांति और सुख प्राप्त होता है। इसलिए प्रत्येक भव्यजीवोंको इन व्यसनोंका त्याग कर देना चाहिए । 1 २०१ प्रश्न - जन्मजरादिजं दुःखं किमर्थं मुच्यते प्रभो ? अर्थ- हे प्रभो ! अव कृपाकर यह बतलाइए कि जन्म- जरा आदिसे उत्पन्न होनेवाले दुःखों का त्याग क्यों किया जाता है ? उत्तर - गर्वजं गर्भजं दुःखं क्रोधजं मानभंगजम् । मायालोमादिजं घोरं भ्रान्तिजं मर्मभेदजम् ॥ ४३५ ॥
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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