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________________ (शान्तिसुधासिन्धु ) २१५ समाधिमरण धारण करने की लालसा पहलेसेही होनी चाहिए । और पहलेसेही इसके लिए विशेष प्रयत्न और अभ्यास करना चाहिए। विना अभ्यास किए समाधिमरण धारण करना कठिन हो जाता है । इसके लिए पहलेसेही आहार और कषायादिके त्याग करनेका अभ्यास करना चाहिए, क्योंकि अन्तसमयमें आहार और कषायादिक त्याग कर देनाही समाधिमरण है । समाधिमरणमें राग, द्वेष, मोह, क्रोध, मान, माया, लोभ, शोक, भय, जुगुप्सा, रति, अरति आदि सब विकारोंको त्यागकर भगवान जिनेन्द्रदेवके चरण-कमलोंमें, बा उनके गणोंमें मन लगाना चाहिए । अथवा शास्त्ररूपी अमृतका पानकर, अपने मनको पवित्र करना चाहिए। फिर अनुक्रमसे आहारका त्याग कर, दूध रखना चाहिए, और गर्म पानीकाभी त्याग कर, अपनी शक्ति के अनुसार वापस धारण करना चाहिए । इस प्रकार कषायादिके समस्त विकागका त्याग कर, और चारों प्रकारके आहारका त्याग कर, जो पत्र नमस्कार मंत्रका जप करते हुए, शरीरका त्याग करता है, उसको समाधिमरण कहते हैं। समाधिमरण धारण करते समय न तो जीवित रहनेकी आशा रखनी चाहिए, न शीघ्र मर जानेकी आशा रखनी चाहिए, न मरनेमे डरना चाहिए, न मित्रोंका स्मरण करना चाहिए, और आगामी कालक लिए भोगोंकी इच्छा नहीं करनी चाहिए । इसीको समाधिमरण कहते हैं। यह समाधिमरण केवल आत्मामें परम शान्ति प्राप्त करनेक लिएही धारण किया जाता है, क्योंकि जहां कषायादिक विकारोंका त्याग हो जाता है, वहांपर आत्मामें शांति अपने आप आ जाती है, तथा आत्माका शुद्ध स्वरूप प्रतिभासित होने लगता है। यदि ऐसा उत्तम समाधिमरण धारण करते हुएभी शांति न हो, तो फिर उसको व्यर्थही समझना चाहिए । स्वर्गादिकके सुख देनेवाला यह समाधिमरणही है, और मोक्ष प्राप्त करानेवालाभी यही समाधिमरण है। इसलिए भव्यजीवको इसका अभ्यास अवश्य करना चाहिए। प्रश्न- सप्तव्यसनत्यागेनालभ्यां को लभते नरः ? अर्थ- हे स्वामिन् ! अब कृपाकर यह बतलाइए कि सप्त व्यसनका त्याग करनेसे इस मनुष्यको कौन-कौनमे अलभ्य पदार्थों की प्राति होती है ?
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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