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________________ ( शान्तिसुधासिन्ध ) ममत्वका त्याग कर देनेसे समस्त विकारोंको दूर करनेवाली, अत्यंत शुद्ध महासुख देनेवाली, और अपने आत्माके समस्त प्रदेशोंमें शांति उत्पन्न हो जाती है । अतएय समस्त भव्यजीवोंको अपने आत्मामें शांति प्राप्त करनेके लिए रागद्वेष, मोह, स्नेह, आदि सब विकारोंका त्याग कर देना चाहिए । भावार्थ - इस संसार में रागद्वेष और मोह ये तीनोंही विकार आकुलता और दुःख उत्पन्न करनेवाले हैं । राग वा स्नेह करनेसे ये लोग कितने व्याकुल होते हैं, यह बात अनुभव करनेसे स्वयं मालूम हो जाती है। जब किसीका कोई पूत्र रोगी हो जाता है, तब स्नेहसे कारण माता गिता कितने व्याकुल होते हैं, तथा उसके मर जानेपर कितने दुःखी होते हैं, यह बात किसीसे छिपी हुई नहीं है । इस प्रकार जब जब अपना कोई शत्रु हानी पहचाता है , तब हम लोग कितने व्याकुल होते हैं, तथा उससे बचनेके लिए और उसको नीचा दिखानेके लिए कितना प्रयत्न करते हैं। इन सब कामोके लिए हजारों रुपये खर्च कर देते हैं, तथा जन्मभर दुःख भोगना पड़ता है। ऐसी व्याकुलतामें और दुःख में कभी शांति उत्पन्न नहीं हो सकती । स्नेह और मोहने कारण ज्यों-ज्यों लालसाएं बढ़ती जाती हैं, त्यों-त्यों व्याकुलता बढती जाती है, तथा व्याकुलतामें दुःख होताही है । इसलिए शांति प्राप्त करने के लिए स्नेह, रागद्वेष, मोह, आदि समस्त विकारोंका त्याग कर देना चाहिए । इन विकारोंका त्याग करनेसे व्याकुलता नष्ट हो जाती है, और व्याकुलताके नष्ट होनेसे आत्मामें परम शांति प्राप्त हो जाती है। उस परम शांतिके प्राप्त होनेसे अन्य सत्र विकार नष्ट हो जाते हैं, और फिर यह आत्मा अपने आत्मस्वभावकेद्वारा समस्त कर्मों को नष्ट कर अविनश्वर मोक्ष प्राप्त कर लेता है। यही आत्माके कल्याणका सर्वोत्कृष्ट उपाय है। प्रश्न – आलोचनादिकानां कोऽभिप्रायो बद में प्रभो ? : अर्थ- हे प्रभो ! अब मेरे लिए कृपाकर यह बतलाइए कि आलोचना आदि करनेका क्या अभिप्राय है ? आलोचनादिक किसलिए की जाती है ?
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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