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________________ ( गान्तिसुधासिन्धु । वहांपर भगवान् जिनेंद्रदेवके शांतमुद्राका दर्शन करनेसेही परम शांति प्राप्त होती है । समता धारण करना शांतिका विशेष कारण है, क्योंकि रागद्वेषके कार्योसे आकुलता होती है, तथा समतामें रागद्वेषका सर्वथा त्याग कर दिया जाता है. इसलिए समतामें सर्वथा शांति प्राप्त होती है। इंन्द्रियदमन में भी परम शान्ति प्राप्त होती है । क्योंकि लालसाही दुःखका कारण है, और इन्द्रियदमनमें लालसाका त्याग हो जाता है। इसलिए इंद्रियदमन करनेसे शांति अवश्य प्राप्त होती है। स्वाध्याय करने में मन-वचन-काय तीनोंही तत्वचर्चा में लग जाते हैं, वा आत्माके स्वरूप में लग जाते हैं । इसलिए वहां भी शांतिकी प्राप्ति अवश्य होती है । मौन धारण करने में भी बहतसी आकुलता मिट जाती है. और शांति प्राप्त हो जाती है । भगवान् जिनेंद्रदेवका पूजन करने में सबसे अधिक निराकुलता वा आनंद प्राप्त होता है, इसलिए उतनी देरतक उत्तम शांति प्राप्त हो जाती है। पात्रदान देने में निग्रंथ गुरुके दर्शन होते हैं। उनके दर्शनसे तथा उनकी सेवासे परमआनंद और शांति प्राप्त होती है। धर्मसाधनमेंभी सब आकुलताएं नष्ट होकर शांति प्राप्त होती है। ध्यानमें आत्मजन्य आनंद प्राप्त होता है । और परम शांति प्राप्त होती है । क्षमा, कृपा: दया, धीरता, वीरता, आदि आत्माके गुणोंमें सदा शांति प्राप्त होती है । आत्मामें लीन होनेसे मोक्ष प्राप्त होनेतककी शांति प्राप्त होती है । आत्मतत्वकी चर्चा वा तत्त्वोंके उपदेश देने में वा, परलोककी चर्चा करने में, आत्माके स्वरूपका बोध होता है. और आत्माके स्वरूपका बोध होनेसे परम शांति प्राप्त होती है। रागद्वेष आदि विकारोंका त्याग कर देनेसे, आत्मा आत्म-गणोंमें लीन होता है, इसलिए यहभी परम शांतिका कारण है। विम्बप्रतिष्ठा, वेदी प्रतिष्ठा कराने में वा तेरहद्वीपविधान आदि अनेक प्रकारके विधान कराने में हजारों मनुष्यों के आत्मामे आनंद और शांति प्राप्त होती है, तथा महापुण्य प्राप्त होता है । भगवान् वीतराग निग्रंथ गुरु परम शांतिकी मूर्ति है, इसलिए उनकी सेवा-भक्ति करनेसे, उनको नमस्कार, वा उनकी स्तुति करनेसे परम शान्ति प्राप्त होती है। पहले अनेक राजा, महाराजा वीतराग गुरुओंके दर्शन करनेमात्रसे संसारसे विरक्त होकर जिनदीक्षा
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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