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________________ ( शान्तिसुधा सिन्धु ) योग्य हैं, उनको ग्रहण कर लेना चाहिए। आत्माका शुद्ध स्वरूप ग्रहण करने योग्य है, और उसके सिवाय अन्य समस्त पदार्थ, वा आत्माके विकार सब त्याग करने योग्य हैं। इसीप्रकार तत्त्वोंका स्वरूप समझकर आत्मजन्य अनंत आनंदको प्राप्त करनेके लिए प्रत्येक भव्यजीवको प्रयत्न करते रहना चाहिए । आत्मजन्य अनंत आनंदके प्राप्त होनेपरही इस जीवका संसार परिभ्रमण, वा कर्मोंका बंधन नष्ट हो सकता है । संसार और कर्मबंधनों के नाशका अन्य कोई उपाय नहीं है । २७६ प्रश्न - काले कलौ मुनिः कुत्र निवसेन्मे वद प्रभो ? अर्थ- हे भगवान् ! अब कृपाकर मेरे लिए यह बतलाइए कि इस कलिकालमें मुनि लोग कहां-कहां निवास करते हैं ? उ. - ग्रामे नगर्यां विपिने श्मशाने गिरौ गुहायां निलये जिनानाम् नदीतटेऽहं निवसामि नित्यं त्यक्त्लेति निद्यं कुदुराग्रहादिम् । द्रादिभावं स्थबलं च बुद्ध्वा यदा यथा यत्रच योग्यता स्यात् त्यक्त्वा प्रमोहं निवसेद्धि तत्र निःस्वार्थबुढया स्वपरात्मसिद्धयै अर्थ प्रत्येक मुनिको सबसे पहले द्रव्य-क्षेत्र -काल- भावका प्रभाव देख लेना चाहिए, और फिर अपना बल वा अबल देख लेना चाहिए । यह सब समझ कर अपने रहरनेके लिए तथा अपने आत्माका कल्याण, और अन्य भव्यजीवोंका कल्याण करनेके लिए जहां योग्यता मिल जाय वहीं रहना चाहिए, किसी भी स्थानके रहने में अपना कोई स्वार्थ नहीं देखना चाहिए, तथा किसी प्रकारका दुराग्रह नहीं करना चाहिए । वहां रहने की और स्वपरकल्याणकी योग्यता यदि किसी गांव में मिल जाय, तो वहां रहना चाहिए, यदि किसी सूने मकान में ऐसी योग्यता मिल जाय, तो वहां रहना चाहिए। यदि किसी श्मशान में ऐसी योग्यता मिले तो वहां रहना चाहिए। यदि किसी पर्वतपर वा किसी गुफा में ऐसी योग्यता मिले तो वहां रहना चाहिए और यदि किसी वनमें वा जिनालय में ऐसी योग्यता मिले तो वहां रहना चाहिए | स्वपर कल्याणकी योग्यता जहां मिलती हो वहीं पर अपना स्वार्थ वा मोहका त्याग कर निवास कर लेना चाहिए ।
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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