SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 276
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( चान्तिसुधा सिन्धु ) संतोष तथा धैर्य धारण करनेसे आत्माकी सिद्धि होती है, राग-द्वेपका त्याग कर देने से आत्माकी सिद्धि होती है, सब प्रकार के संकल्प - विकल्पोंका त्याग कर देनेसे आत्माकी सिद्धि होती है, और हेय तथा उपादेयका ज्ञान होनेसे आत्मजन्य आनंदको प्रकट करनेवाली आत्मा की सिद्धि होती है । अतएव अपने आत्माके यथार्थ स्वरूपको समझकर अपने आत्माकी सिद्धि करनेके लिए रागद्वेषादिका सर्वथा त्याग कर हेयोपादेयका ज्ञान प्राप्त करनेके बंधनोंको नाश करनेवाले भव्यजीवोंको सदाकाल अपनी समस्त शक्ति लगाकर प्रयत्न करते रहना चाहिए । २७५ भावार्थ - यह संसारी आत्मा अनादिकालसे इस संसार में परिभ्रमण कर रहा है, तथा उस परिभ्रमणका कारण राग-द्वेष है, वा स्त्री घरका संबंध, वा अनेक प्रकारके संकल्प-विकल्प हैं। यही जीव इन राग-द्वेषके कारण, वा अनेक प्रकारकी लालसाओंके कारण अनेक प्रकारके पाप उत्पन्न किया करता है, और अनेक प्रकारके अशुभ कर्मोंका बंध किया करता है, तथा उस कर्मबंध के कारण फिर इस संसार में परिभ्रमण किया करता है। घर-गृहस्थी में रहता हुआ यह मनुष्य अनेक प्रकारके पाप उत्पन्न करता है, व्यापार में अनेक प्रकारके पाप करता है, भोगपभोगोंकी सामग्री इकट्ठी करने में अनेक प्रकारके पाप उत्पन्न करता है, तथा उन पापोंकेही कारण अशुभ कर्मोंका बंध करता हुआ संसार में परिभ्रमण करता हुआ यह जीव कभी नरकमें जाता है, कभी निगोदके दुःख भोगता है, कभी पशुओं में जन्म लेता है, और कभी देव वा मनुष्य होता है । इसप्रकार यह जीव सदाकाल दुःख भोगा करता है, । यदि यह जीव अपने आत्माको इन दुःखोंसे बचकर सदाके लिए सुखी बनाना चाहता है, और आत्माकी सिद्धि या मोक्ष प्राप्त कर लेना चाहता है, तो उसको सबसे पहले समस्त इच्छाओंका नाश कर तपश्चरण धारण कर लेना चाहिए, स्त्रीसमागम और घर के समस्त संबंधों का त्याग कम महाव्रत धारण कर लेने चाहिए, राग द्वेषका त्याग कर, वीतराग अवस्था धारण कर लेनी चाहिए, और संकल्प-विकल्पोंका त्याग कर, मन और इंद्रियों को अपने वश में कर लेना चाहिए। तदनंतर संतोष और धैर्य धारण कर हेयोपादेयका विचार करना चाहिए। जो हेय अर्थात् त्याग करने योग्य हैं, उन सबका त्याग कर देना चाहिए, और जो उपादेय वा ग्रहण करने
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy