SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( शान्तिसुधामिन्ध्र । पदार्थ देना चाहिए । मुनियोंको आहारदान, पोंछी, कमण्डलु, शास्त्र, औषध आदि देना चाहिए । अजिका भुल्लिकाओंको पीछी, कमंडलु, आहार, शास्त्र, औषध और वस्त्र आदि देना चाहिए । मुनि अर्जिकाओंको उप्पण जलको आवश्यकता हो तो उण जल देना चाहिए । मुनि लोग वा अजिकाएँ आहारको जाते समय जो जल होता है वह आठ पहर तक चलना है। यदि वे मुनि वा झुल्लिका अजिकाएं दूसरे दिन उपवास करें वा दो चार लगातार उपवास करें तो उनके कमंडलम जलकी आवश्यकता होती है। इसलिए ऐसा समय आनेपर उष्ण जल पहुंचाना श्रावक का मुख्य कर्तव्य है । श्रावकोंको मनियोंकी देख भाल रखनी चाहिए । बेलगांवके पास पहिले किसी धाबकने मुनियोंके निवासके लिए पर्वत में उकेर कर सातसौ गुफाएं वनवाई थीं। यह बात निश्चित है कि जहां इतने मुनियोंका समुदाय रहता है वहांपर दस बीस पचास मुनि एक एक दो-दो बा चार-चार उपवास करनेवाले भी मिल जाते हैं। ऐसे मुनियोंके कमंडलुओंमें गर्म जल पहुचाने के लिए उनी श्रावकने एक गांव भी समर्पण किया था। इस प्रकार उस श्रावकने सदाके लिए यह प्रबंध कर दिया था । ऐसा ही विचार प्रत्येक श्रावकको रखना चाहिए। इसके सिवाय मुनियोंके समुदायमें जिस पदार्थकी आवश्यकता हो वह पहुंचाना चाहिए, उनकी रक्षाका पूर्ण प्रबंध करना चाहिए, शास्त्रभंडार स्थापित करने चाहिए जिनमें जैनशास्त्र ही विराजमान करने चाहिए । इनके सिवाय जिनपूजन और जिन-प्रतिष्ठाएं करानी चाहिए, पंचकल्याणक महोत्सव कराने चाहिए, रथोत्सव कराना चाहिए और जिनधर्मकी खूब प्रभावना करानी चाहिए । इन सबमें द्रव्य लगानसे महा पुण्यकर्मका बंध होता है। इसी प्रकार श्रावक श्राविकाओंको भी आहार औषध वस्त्र आदि देना चाहिए। श्रावकोंमें इस प्रकार जो देन लेन होता है वह सब समदत्ति कहलाती है । यह समदनि श्रावकोंको अवश्य करनी चाहिए । इसके सिवाय जो जीव दुःखी हैं उनका दुःस्व दूर करना चाहिए । जो भूखे हैं उनको अन्न वस्त्र देना चाहिए, जो बेकार हैं उन्हें जीविकामे लगा देना चाहिए और जो रोगी हैं उनको औषध दान देना चाहिए । इस प्रकार श्रावकोंको अपना बहुतसा द्रव्य दान पुण्यमें स्वर्च कर देना चाहिए केवल पहरेदारके समान धनकी रक्षा कर लेना पुण्यका फल नहीं है ।
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy