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(शान्तिसुधासिन्धु )
मोर आदि कितनेही जीव उनके स्वाभाविक शत्र होते हैं। इसलिए उन कोडे-मकोड़ोंका अपनी छोटीसी आयुपर्यंत भी बचे रहना अत्यंत कठिन होता है । इसी प्रकार जो पुरुष बिना विचार किये चाहे जिसको धन दे देता है, वह अपनी मृत्यही खरीद लेता है। महाराज जीवंधरके पिताने विना कुछ विचार कियही अपने राज्यका सब प्रबंध अपना मंत्री काष्ठांगारको दे दिया था । उनका कडबा फल बहत शीग्रही राजाको भागना पडा था । दूष्ट काष्ठांगारने राज्यका सब प्रबंध लेकर सज्जन आदमियोंको राज्यसे अलग कर दिया था, और फिर अपनी सब सेना लेकर राजभवन घेर लिया था। यद्यपि राजाने बाहर आकर युद्ध किया था, परंतु ऐसे राज्यसे विरक्त होकर उसने समाधि धारण कर ली थी। इतना होनेपरभी उस दुष्ट काष्ठांगारने उस राजाको मार दिया था । इसलिए बिना विचार किये धनका देनाभी मत्यका कारण है । इमीप्रकार विना विचार किये भोजन करनाभी मृत्युका कारण है। विचार पूर्वक भोजन करनेसे स्वास्थ्य ठीक रहता है, विना विचार किए भोजन करनेस स्वास्थ्य बिगड जाता है और कभी-कभी विषेला कोई पदार्थ भोजनमें आ जानेसे मृत्यूभी होती है । अतएव विना विचारे भोजन करना मृत्युका कारण है 1 इस संसारमें जिस पुरुषका कोई सहायक नहीं है उसकी समय मेंही मत्य हो जाना कोई आश्चर्यकी बात नहीं है। न जाने कब कोई आकस्मिक आपत्ति आती है, और यह जीत्र मर जाता है । इसलिए सहायकका न होनाभी मृत्युका कारण है । यद्यपि मुनिराजभी बनोंमें अकेले रहते हैं । तथापि उनका श्रेष्ठ धर्म और तपश्चरणही उनका प्रबल सहायक होता है । जो जीव तीव्र कषायी होता है, वह दूसरे किसी तीव्र कषायों के द्वारा अवश्य मारा जाता है अथवा तीव्र कषायके कारण कभी-कभी वह स्वयं अपना घात कर लेता है। इसलिए तीब कषायका होना मृत्युका कारण है । जो पुरुष ऊंचे-नीचे सब स्थानोंमें शीघ्र गमन करता है, वह कभी किमी गड्ढे में गिर जाता है,
और कभी ठोकर खाकर गिर जाता है और मर जाता है । इसीलिए शीघ्रगमनभी मृत्युका कारण है, जो जीव कुकर्म करता रहता है उसके लिए एक-दो नहीं किंतु पैकडों मृत्यु के कारण मिल जाते हैं, वेश्यागमन, परस्त्रीगमन, जुआ, चोरी आदि कुकर्म करनेवालोंके परस्परभी एक