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( शान्तिसुधासिन्धु )
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कायका ममत्व नष्ट हो जाता है, और कषाय नष्ट हो जाते हैं, तब चिदानंदरसका आस्वादन आनाही चाहिए। यदि उपवास करते हुएभी चिदानंद रसकी प्राप्ति नहीं होती है । तो समझना चाहिए कि उसकी कषायें वा ममत्वभी नष्ट नहीं हई है, और इसलिए वह उपवास केवल लंघन गिना जाता है । इसप्रकार ब्रह्मचर्यका पालन, सत्य-भाषण, संतोष-धारण आदि सब कार्य चिदानंद रसके लिएही किए जाते हैं। इसलिए आत्मजन्य आनंदरसका आस्वादन करनाही आत्मका कल्याण है । मोक्षमेंभी यही सुख है । अतएव भन्यजीवोंको सबसे पहले इसीके लिए प्रयत्न करना चाहिए ।
प्रश्न - स्यात्केन हेतुना लोक श्रेष्ठवस्तुसमागम: ?
अर्थ -- हे भगवन् ! अब कृपाकर यह बतलाइए कि इस संसार में उत्तम पदार्थोंका समागम-प्राप्ति किस कारणसे होती है ? उ. गृहं सदा मंगल कार्ययुक्तं, पुत्रोपि विद्या रमनी सुरक्तः । भार्या सुशीला गृहकार्यदक्षा, दानार्चनार्थ च धनं यथेष्टम् ॥ स्वकारतुष्टः परबारमुक्तः, स्वाज्ञानुकूलोऽखि लमित्रवर्गः । पूर्वोक्तभावस्य सुवस्तुनः को, समागमः स्याद् वरपुण्यभाजाम
अर्थ – इस संसारमें सदाकाल मंगल कार्योंसे सुशोभित रहनेवाले घरकी प्राप्ति उत्तम पुण्यवान पुरुषोंकोही होती है। सदाकाल विद्यारूपी ललनामें लीन रहनेवाले पुत्रकी प्राप्ति भी उनम पुण्यवान पुरुषोंकोही होती है। घरके कामोंमें अत्यन्त चतुर और शीलवती स्त्रीको प्राप्ति उत्तम पूण्यवानोंकोही होती है। दान पूजा आदि धर्मके साधनोंके लिए यथेष्ट धनकी प्राप्तिभी पुण्यवान पुरुषोंकोही होती है । स्वदारसंतोषव्रतको धारण करनेवाले, परस्त्रीका सर्वथा त्याग करनेवाले और अपनी आज्ञाके अनुकल चलनेवाले मित्रवर्गोंकी प्राप्तिभी पूण्यान पुरुषोंकोही होती है । इसप्रकार ऊपर जितने पदार्थ बतलाये हैं, अथवा इस संसारमें जो-जो उत्तम पदार्थ हैं, उन सबकी प्राप्ति पुण्यवान् पुरुषोंकोही होती है ।
__भावार्थ -- इस संसारमें गृहस्थ लोगोंके लिए पुत्र, स्त्री, धन, घर और मित्रवर्गही सुखकी सामग्री गिनी जाती है। वह मुक्की सब