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( शान्तिसुधासिन्धु )
दया गुण समस्त जीवोंका कल्याण करनेवाला है, और इसीलिए सब जीव अपने आधीन हो जाते हैं । शक्तिके आधीन भी सब जीव हो जाने हैं. यदि वह शक्ति शांति उत्पन्न करनेवाली हो, तो फिर उसके बाहर कोई जीव हो ही नहीं सकता । भगवान् अरहंत देवमें अनंत शक्ति होती है, और वह समस्त जीवोंको शांति उत्पन्न करनेवाली होती है। इसीलिए भगवान् अरहंत देवकी आज्ञाके विरुद्ध इंद्रादिक देवभो नहीं चल सकते हैं, किंतु इंद्रादिक देव सदाकाल उनकी भक्ति में लगे रहते है, इससे सिद्ध होता है कि शांति उत्पन्न करनेवाली शक्तिभी समस्त संसारको बश करनेवाली होती है। देव शास्त्र गुरुकी भक्ति जन्म मरणरूप मंसारको नाश करनेवाली होतो है। जहां देव शास्त्र गुरुको अचल भक्ति होती है, वापर शत्रु अपने वश में हो जाते हैं। इसका उदाहरण स्वामी समनभद्रकी भक्ति है। जिस समय स्वामी समंतभद्रको भस्मकच्याधि हो गई थी, और वे बनारस जाकर वहांके राजा शिवकोटिके शिवमंदिर में पुजारी बनकर रहे, शिबके लिए आया हुआ सब अन्न भक्षण कर जाते थे, इसके पहले पूजारियोंने किसी तरह यह बात जान ली थी और राजाको सब समाचार कह दिया था । उस समय राजाने समंतभद्रसे कहा था कि, हम इस अपराध के बदले और कुछ नहीं चाहते, केवल हमारे सामने महादेवको एक बार नमस्कार कर लो । यदि तुम महादेवको नमस्कार न करोगे तो तुमको कठोर दंड दिया जायगा। उस समय स्वामी समंतभद्रने बड़े आत्मगौरबके साथ कहा था कि, में नमस्कार तो कर लंगा, परंतु तुम्हारा यह महादेव मेरे नमस्कारको सहन नहीं कर सकता। मेरे नमस्कारसे वह फट जायगा । इसपर राजाने कहा था कि अच्छा महादेवको फट जाने दो, परंतु तुम नमस्कार अवश्य करो । स्वामी समंद्रभने इस बातको स्वीकार कर लिया और उस महादेवको लोहेकी मोटी जंजीरोंसे जकडवा दिया। स्वामी समंतभदको अपनी देवभक्तिपर अटल विश्वास था और इसीलिए उन्होंने ऐसा किया । तदनंतर समस्त राजा-प्रजाके सामने वे स्वयंभस्तोत्रकी रचना करने लगे। स्वयंभूस्तोत्र में चौबीस तीर्थकरोंकी स्तुति है. और एक-एक तीर्थकरकी स्तुति में पांच-पांच या दस-दस श्लोक हैं। इस प्रकार स्तुति करते-करते उन्होंने सात तीर्थंकरोंकी स्तुति कर डाली परंतु इतने श्लोकोंमें नमस्कार वाचक कोई शब्द नहीं आया । जब उन्होंने भगवान चंद्रप्रभूको स्तुति करता