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________________ ( शान्ति सुधासिन्धु ) दान देकर अपनी कीर्ति और शोभा अवश्य बढा लेनी चाहिए | साधु पुरुषों की शोभा शान्ति है । जो पुरुष साधू होकर भी अपने क्रोधादिक कषायोंको तीव्र रखता है, वह पुरुष साधारण गृहस्थोंसे भी बुरा समझा जाता है । आत्माका कल्याण शान्तिसेही हो सकता हूं, तथा आत्माका कल्याण करने के लिएही साधु अवस्था धारण की जाती है। इसलिए साधु महात्माओं क्रोधादिक कपायोंका सर्वथा त्याग कर देना चाहिए और शान्ति धारण कर आत्माका कल्याण कर लेना चाहिए । इसीमें उनकी शोभा है । अन्धा पुरुष अशोभन हो जाता है । परन्तु यदि वह विद्वान है तो वह अशोभनताभी उसका आभूषण कहलाता है । इमी प्रकार शूर-वीर पुरुषोंकी शोभा क्षमा है, शूर-वीर पुरुष बिनाकारण युद्ध नहीं करते, यदि कारणवश उन्हें युद्ध करना पडता है, तो शत्रुको जीतकर उसे पकड़ लेते हैं, और फिर उसको अपने आधीन कर, उसको क्षमा कर देते है, उसका राज्य लौटा देते हैं, और उसको उसके राज्यसिंहासनपर बिठा देते हैं, इसमें उनकी शोभा और कीर्ति बढती है । तपश्चरणकी शोभा इच्छाओंको नाश होना है। जिन पुरुषों की लालसाए नष्ट नहीं होती, उनका तपश्चरण करना सर्वथा व्यर्थ हो जाता है । इसका भी कारण यह है कि इच्छाओंको रोकलेनाही तपश्चरण कहलाता है । यदि तपस्वी होकरभी इच्छाओंका अभाव न हुआ तो वह तपस्वी अनेक प्रकारके पापोंको उत्पन्न करता रहता है, परंतु तपश्चरण पापको नाश करनेके लिए धारण किया जाता है। इसलिए इच्छाओंका नाश कर लेनाही तपश्चरणकी शोभा है। धर्मको शोभा अहिंसा है । इस संसार में सबसे बडा पाप हिंसा है। झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह आदि अन्य सब पाप हिंसा के अंतर्गत हैं, क्योंकि झूठ, चोरी, आदि सबमें हिंसा होती है। इस प्रकार हिंसा करना महा-पापमय कहलाती है. यदि वही हिंसा किसी धर्मके नामपर की जाय तो उसके समान अन्य कोईभी चोर और वज्रसम पाप नहीं हो सकता । इसलिए धर्मकी शोभा अहिंसासेही होती है । इसी प्रकार जीवकी शोभा सम्यग्दर्शन है | सम्यग्दर्शन आत्माकाही एक गुण है, जो अनादि काल से कम से ढक रहा है । उस सम्यग्दर्शनरूप गुणको ढकनेवाले मोहनीयकर्मको नष्ट कर, उस गुणको प्रगट कर लेना इस जीवके लिए शोभाका परम स्थान हो जाता है । विना सम्यग्दर्शनके यह जीव अपने २३५
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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