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________________ ( शान्तिसुधासिन्धु) समस्त अशुभ कर्मोका राजा मोहनीयकर्मही है। इस मोहनीय कर्मके पचल सत्य सनाभी रंक हो जाता है, और यदि इस मोहनीयकर्मका मंद उदय हो जाय, तो कोई रंक भी राजसिंहासनपर विराजमान होता है । रामचंद्र जैसे पराक्रमी और त्रिखंडी राजाभी बनमें घूमते फिरे, यह अशुभ कर्मकीही प्रबलता है । इतने पराक्रमी कृष्ण अपने भाईके बाणसे निर्जन बनमें मारे गये, यह अशुभ कर्मकीही प्रबलता है । इसप्रकार परशुरामको मारनेवाला चक्रवर्ती राजा, रंकके समान भोजन करने के लिए आया था, परंतु शुभकर्मके प्रबल उदयसे जिस थालमें भोजन परोसा गया था, वह थालही चक्र बन गया था । कर्मोकी लीला बडोही विचित्र है। इन कर्मोकीही कृपासे श्रीमती अंजना जसी सतीको भी वन-बनमें फिरना पड़ा, और अनेक कप्ट सहने पड़े। इन कर्मोकीही कृपासे सती सीताको अग्निकूण्डमें प्रवेश करना पडा । अन्य साधारण जीवोंकी तो बातही क्या है, इन कर्मोकीही कृपासे भगवान् पार्श्वनाथको भी अनेक प्रकारके उपसर्ग सहन करने पडे । इसप्रकार शुभ कर्मोके उदयसे प्रद्युम्नकुमारको अनेक विद्याएं सिद्ध हो गई, शुभ कर्मोक उदयसंही लक्ष्मणको अमोघ शक्ति लगनेपर विशल्यादेवी अपने आप आ गई, और शुभ कमौकेही उदयसे विभीषण रामचंद्रसे आ मिला । आज जो मूर्ख कहलाता है, वही पुरुष शुभ कर्मका उदय होनेपर चतुर और धनी हो जाता है, और अयोग्य पुरुषभी शुभ कर्मके उदयसे सुयोग्य हो जाता है । कहां तक कहा जाय? इन कर्मोकी लीला बडी विचित्र है । जी कार्य कर्म कर सकते हैं, उसको अन्य कोई भी नहीं कर सकता । यह समझकर इन दृष्ट कर्मोको नाश करनेका प्रयल करते रहना चाहिए, जिससे कि मोक्ष के अनंतसूखकी प्राप्ति हो जाय । यही भव्यजीवका कर्तव्य है। प्रश्न- लोके कस्य रिपुः कोस्ति वद मे शांतय प्रभो ? अर्थ- हे प्रभो ! अब कृपा कर यह बतलाइये कि इस संसारमें कौन किसका शत्रु है ? उ.मूर्खस्प शत्रुः प्रबलश्च विद्वान् लोकेस्ति मिक्षुः कृपणस्य शत्रुः चौरस्य शत्रुर्नपतिः सधैवाऽधर्मस्था शत्रुश्च निजात्मधर्मः ।।
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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