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________________ (शान्तिसुवासिन्धु ) मोक्ष जाते हुए भी जीवोंकी संख्या कभी समाप्त नहीं हो सकती। इस संसारमें निगोदराशि अनंतानन्त भरी हुई है। एक सुईके अग्र भागपर वा उससे भी बहुत कम भागपर एक निगोदिया शरीर रहता है, और उस शरीर में अनंतानंत निगोदराशिके जीव रहते हैं, तथा इस प्रकारके rtain यह समस्त लोकाकाश भरा हुआ है । फिर भला उन जीवोंकी संख्या समाप्त कैसे हो सकती है । हां ! जितने जीव मोक्ष चले जाते हैं, उतने जीवोंकी संख्या संसारी जीवोंकी संख्या मेंसे कम अवश्य हो जाती है। परंतु वह कभी किसी कालमें भी समाप्त नही हो सकती । इसलिए संसार के दुःखोंसे डरनेवाले भव्यजीवोंको मोक्ष प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करते रहना चाहिए, इस संसार में बहुत से ऐसे पदार्थ हैं, जिनको हम नहीं देख सकते । राम-रावण आदिको हुए बहुत काल व्यतीत हो गया, मेरु पर्वत आदि अकृत्रिम पदार्थ बहुत दूर हैं, अथवा निगोदराशि बहुत सूक्ष्म है, इन सबको हम देख नहीं सकते, तथापि इनका अभाव सिद्ध नहीं हो मकता । यद्यपि हमने अपने दस-बीस पीढीके पहले लोग देखे नहीं है, तथापि उनका अभाव सिद्ध नहीं हो सकता, इसलिए भगवान अरहंतदेवने जो कहा है, वह मिथ्या वा विपरीत नहीं हो सकता, यही समझकर उनके वचनोंपर अटल विश्वास रखना चाहिए, और समस्त संकल्प-विकल्पों का त्याग कर मोक्षमार्गको प्राप्त करनेमें लग जाना चाहिए । यही मनुष्यका कर्तव्य है । प्रश्न कौ वदाभव्यजीवे स्यात्स्वरुचिः शर्मंदा नवा ? २२० - अर्थ- हे स्वामिन् ! अब कृपाकर यह बतलाइए कि इस संसार में अभव्य जीवोंको आत्माका कल्याण करनेवाली आत्मरुचि होती हैवा नहीं ? उ. लोहे सुगंधश्च खले सुनीतिरिक्ष फलं लोभिनरे शुचित्वम् । स्वर्गेपि पीडा स्वसुखेपि दुःखं स्यादर्थीचता वर भोगभूम्याम् अग्नौ च शीतं गगनेपि पुष्पं मोक्षे ह्यशांतिर्नरके च शांतिः ॥ पूर्वोक्तरीतिश्च भवेत्तथापि स्वात्मानुभूतिनं भवेद्भथ्ये । अर्थ - यद्यपि लोहे में सुगंध नहीं होता, दुष्ट पुरुष नीति और न्यायका पासन नहीं कर सकता, ईखपर कभी भी फुल नहीं लग
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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