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________________ ( शान्तिसुधासिन्ध) रूपए हैं, और इसीलिए वह करोडपति कहलाता है, यदि उसके पाससे ५) रु. प्रतिदिन निकाल लिए जाय, और वह जब तक जीवित रहे तत्र तक निकाले जांय, तो भी वह करोडपतिही बना रहेगा 1 यद्यपि रुपयोंममे दस बीस लाख रुपये कम हो जायगे, तथापि वह करोडपति अवश्य बना रहेगा । इसीप्रकार जीवोंकी संख्या अक्षय-अनन्त है, उसमेंसे बहुत जीब मोक्ष पहुंचते रहते हैं, तथापि उसकी अक्षय, अनन्त संख्यामें किसी प्रकारकी कमी नहीं हो सकती। इसके एक दो उदाहरण और देख लीजिये । आकाश अनंत है । यदि हम किसी एक स्थानको नियत स्थान मानलें, और उस स्थानमें हवाई जहाजके द्वारा पूर्व दिशाको और गमन करते जांय, तो क्या पूर्व दिशाका अंत आ सकता है ? यद्यपि जितना गमः। ते जाले हैं, उतना भानिय स्थानसे पूर्व दिशाकी ओरका भाग कम-कम होता जाता है, परंतु पूर्व दिशाका अंत नहीं आ सकता। यदि कोई मनुष्य उस दिशाका अंत मान ले, तो आकाश अनंत नहीं ठहरता है, तथा फिर उस अंतिम भागके आगे क्या है, सो बतलाना चाहिए, परंतु ये दोनोंही बातें असम्भव है, न तो आकाशका अंत आ सकता है, और न आकाशका अभाव होकर दूसरा पदार्थ रह सकता है, इसलिए जिस प्रकार आकाशके एक दिशाकी और गमन करते हुए, आकाशका बहुभाग घट जाता है, तथापि उसका अंत नहीं आता, उसी प्रकार उन जीवोंकी अक्षय अनंत संख्यामसे जो जीव मोक्ष चले जाते हैं, उतनी संख्या कम अवश्य हो जाती है. तथापि वह अक्षय अनंत संख्याही बनी रहती है । दूसरा उदाहरण-मनुष्य अपनी मातासेही उत्पन्न होता है, तथा उसकी माता अपनी मातासे उत्पन्न होती है, और उसकी माता, अपनी मातासे उत्पन्न होती है । इस प्रकारकी समस्त माताएं यदि कल्पनाशक्तिकेद्वारा एक स्थानपर इकटी कर ली जांय, और उसमें से फिर एक-एक घटाते जांय, वा अलग करते जाय, तो क्या उन माताओंका कभी अंत आ सकता है ? यदि कोई मनुष्य किसी माता तक गिनकर उसको अंतिम माता कहेगा, तो फिर यह प्रश्न सहज रीतिसे उत्पन्न हो जायगा कि वह अंतिम माता किससे उत्पन्न हुई थी, और फिर उसकी माता किससे उत्पन्न हुई थी? इस प्रचार विचार करनेसे उन माताओंका अंत कभी नहीं आ सकता । उसी प्रकार
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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