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________________ २१८ उत्तर (शान्तिसुधा सिन्धु ) यथा यथा पदार्थाः स्युर्दुष्टा ज्ञातास्तथा तथा । जीवाः स्युश्चाक्षयानन्ताः प्रोक्ताः केवलिनेति कौ । ३१७| गतास्ततोपि मोक्षं च किंतु रिक्या मही न सा । अकृत्रिमपदार्थानां सूक्ष्मानां दूरवर्तिनाम् ॥ ३९८ ॥ स्याद्भावो न बुदध्वेति तत्त्वज्ञा भवभीरवः । विश्वरिक्तभयं त्यक्त्वा कुर्वन्तु मोक्षसाधनम् ।। ३१९ ॥ अर्थ- वीतराग केवली भगवान् अरहंतदेवने जो-जो पदार्थ जिसजिस रूपसे देखे हैं, वा जिस-जिस रूपसे जाने है, वे पदार्थ उसी उसी रूप मे बतलाये हैं । उनमे से जीव पदार्थोंकी संख्या अक्षय, अनंत, बतलाई हैं | अनादिकाल से लेकर आजतक अनंतानंतकाल व्यतीत हो चुका, और इस अनंतानंतकाल में जीव बराबर सदाकाल मोक्ष जाते रहे हैं, तथापि यह पृथ्वी आज तक जीवांने खाली नहीं है, इसलिए जो सूक्ष्म पदार्थ हैं, वा दूरवर्ती अकृत्रिम पदार्थ है, वा दूर कालवर्ती पदार्थ हैं, उनका कभी अभाव नहीं कहा जा सकता । अतएव संसारके दुःखोंसे भयभीत रहनेवाले और तत्त्वोंके यथार्थ स्वरूपको जाननेवाले भन्यजीवोंको इस संसारको खाली होनेके भयका त्याग कर देना चाहिए, और मोक्षके लिए प्रयत्न करते रहना चाहिए । भावार्थ- भगवान् अरहंतदेव राग-द्वेष आदि समस्त दोषोंसे रहित वीतराग होते हैं, तथा चर, अचर, सूक्ष्म, स्थूल आदि समस्त पदार्थोंको जाननेवाले सर्वज्ञ होते हैं । जो-जो वीतराग सर्वज्ञ होते हैं, वे कभी भी पदार्थोंका मिथ्या स्वरूप नहीं कह सकते। जो राग-द्वेषको धारण करता है, वह अपने राग-द्वेष के कारण पदार्थोंका मिथ्या स्वरूप कह सकता है, तथा जो सर्वज्ञ नहीं होता वह भी अल्पज्ञ होने के कारण पदार्थोंका मिथ्यास्वरूप कह सकता है । परन्तु जो वीतराग होता है, सर्वज्ञ होता है, वह कभी भी पदार्थों का मिथ्यास्वरूप नहीं कह सकता, इसलिए भगवान् अरहंतदेवने जो कहा है, वह सर्वथा यथार्थ है । उसमें किसी प्रकारका अन्तर नहीं पड सकता । भगवान् अरहंतदेवने जीवोंकी संख्या अक्षय अनंत बतलाई है, इसलिए वह जीवोंकी संख्या कभी समाप्त नहीं हो सकती है। मान लीजिये कि किसीके पास दस करोड
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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