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(शान्ति सुधासिन्धु )
करने लगते हैं । दत्तक लेने के पहले वे उस बालकके लिए कुछ भी करनेके लिए तैयार नहीं थे, क्योंकि दत्तक लेनेके पहले वे उससे कोई किसी प्रकारका मोह नहीं करते थे । दत्तक लेने और मोह करनेक अनन्तर वे शेठ लोग उस बालकके लिए सब कुछ करनेको तैयार हो जाते हैं। उसके लिए अनेक प्रकारके दुःख सहन करते हैं, अनेक प्रकार के पाप करते हैं, और अपना सब धन खर्च करने को तैयार हो जाते है । इससे सिद्ध होता है, कि समस्त पाप और दुःखोंका कारण एक मोहही है । जो लोग मोक्ष प्राप्त करनेकी इच्छा करते हैं. उन्हें सबसे पहले इस महिका त्याग कर देना चाहिए। मोहका त्याग कर देनेसे क्रोध, मान, माया, लोभ, मद, मत्सर, काम आदि आत्मा के समस्त विकार नष्ट हो जाते हैं, इसप्रकार मोका कर देते कुप हो जाता है । क्योंकि मोहकेही कारण कुटुम्बमें प्रेम होता है | मोहके छूट जाने से कुटुम्वका प्रेम अपने आप छूट जाता है। इस प्रकार जब यह आत्मा अपने मोहका त्याग कर देता है, तथा कषायादिक समस्त विकारोंका त्याग कर देता है, तब यह आत्मा शुद्ध हो जाता है । शुद्ध होनेके कारण अपनेही आत्माके द्वारा अपने शुद्ध आत्माका दर्शन करने लगता है, और शुद्ध आत्माका स्वरूप जानने लगता है । उस समय इसकी समस्त बाह्य क्रियाएं छूट जाती हैं, और यह आत्मा अपने आत्मामें लीन होकर अपने शुद्ध आत्माका चितवन करने लगता है । इस प्रकार अपने शुद्ध आत्मा चितवनके द्वारा यह आत्मा अपने समस्त कर्मो को नष्ट कर डालता है, और अनन्तसुख, अनंतज्ञान, अनंतदर्शन और अनंत वीर्य इन अनंतचतुष्टयको प्राप्त होकर मोक्ष प्राप्त कर लेता है, इसलिए प्रत्येक भव्य जीवको मोहका त्याग कर, मोक्ष प्राप्त करनेका प्रयत्न करते रहना चाहिए 1
प्रश्न- यदि जीवाः सदाकालं मोक्षं प्रयान्ति विश्वतः |
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सर्वं विश्वं भवेत्तर्हि जीवशून्यं भयंकरम् ।
अर्थ - हे भगवन् ! अब कृपाकर यह बतलाइए कि यदि ये संसारी जीव, इस संसारसे सदाकाल मोक्ष जाते रहेंगे तो फिर किसी न किसी दिन यह सब संसार समस्त जीवोंसे रहित होकर शून्य हो जायगा वा नहीं ?