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________________ । शान्तिसुधासिन्ध ) कर देता है, तब आत्मा पवित्र कहलाता है। यही कारण है कि जो स-यग्दर्श के विन्द हैं. ही सुद नशापाली पवित्रताके चिन्ह हैं। समस्त जीवोंकी दया पालन करना, तथा दीन दरिद्री जीवोंकी विशेषकर दया पालन करना सम्यग्दर्शनका चिन्ह है, और इसलिए यह पवित्रताका चिन्ह बतलाया है। धर्मात्मा पुरुषोंमें भक्ति व प्रेम होना सम्यग्दर्शनके वात्सल्यअंगका कार्य है । अतएव यह धर्मात्माओं में भक्ति व प्रेम होना पवित्रताका कारण आचार्योने बतलाया है। वीतराग निग्रंथ गुरुओंमें प्रेम होना तथा उन गुरुओंको तरणतारण मानकर उनकी सेवा-सुश्रुषा करना, भक्ति करना, बयावृत्यकरना आदि सब सम्यग्दृष्टिका कार्य है । इसलिए यह गुरुमवा, गुरुभक्ति वा गुरुप्रेम आचार्योंने पवित्रताका चिन्ह बतलाया है । इस प्रकार इंद्रियजन्य मुखोंका त्याग कर देने से आत्मा पवित्र हो जाता है, इसलिए यह भी आत्माकी पवित्रताका कारण है। इसप्रकार समस्त जीवोंमें समानता धारण करना, दूसरे जीवोंके समस्त शुभ, अशुभ विचारोंमें समानता धारण करना, किसीसे राग बा द्वष नहीं करना, सम्यग्दर्शनका कार्य है, और आत्माकी पवित्रताका कार्य है । कर्मोको न बढ़ने देना, आस्रवके कारणोंको नष्ट कर देना, वा अशुभ कर्मोको नष्ट करते जाना सम्यग्दर्शनका कार्य है, और आत्माकी पवित्राका कार्य है। मधुर और सत्य भाषण करना आत्माकी पवित्रताकाही सूचक है 1 कर्मबंधोंका नाश करनेके लिए स्वपरभेदविज्ञानही प्रधान कारण है । आत्मा और अन्य पदार्थों का यथार्थज्ञान होनेमे यह आत्मा कर्मबंधनोंक कारणभूत राग-द्वेषका सर्वथा त्याग कर देता है, और फिर समता धारण कर कर्मोको नष्ट करता जाता है । इसप्रकार कर्माको नष्ट करने में स्वपरभेदविज्ञान कारण है, और इसलिए वह आत्माकी पवित्रताका चिन्ह है । इसप्रकार स्वर्ग-मोक्षके मार्गमें वा रत्नत्रयमें प्रेम धारण करना, रुचिपूर्वक उनका पालन करना, आत्माकी पवित्रताका विशेष चिन्ह है । रत्नत्रयका पालन करना और आत्मकी पवित्रताका होना इन दोनोंमें परस्पर अविनाभावी संबंध है । पवित्र आत्माही रत्नत्रयका पालन कर सकता है। और रत्नत्रयका पालन करनेसे आत्माकी पवित्रता और अधिक बढ़ जाती है । इस प्रकार आचार्योंने ये सब पवित्र आत्माके चिन्ह बतलाए हैं । इनको धारण करना प्रत्येक भव्यजीवका कर्तव्य है ।
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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