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________________ निनानुन्धुि प्रश्न – जानहीना क्रिया देव सफला बिफला वद ? अर्थ- हे स्वामिन ! अब कृपा कर यह बतलाइए कि बिना ज्ञानके जो क्रिया की जाती है वह सफल होती है वा निष्फल होती हैं? उ. सुबोधहीना विफला क्रिया स्थात् निद्यास्ति चान्धादिगते समाना प्रोक्तं ततो बोधफलं चरित्रं विश्वासयोग्यं सुखशांतिमूलम् ॥ वृते यथा यश्च तथा करोति स्यातस्य पूजापि यशस्त्रिलोके । ततः क्रिया बोधयुता भवेयुर्यतो भवेन्मोक्षरमा स्वदासी ।। अर्थ – जिस प्रकार कोई अंध मनष्य गमन करनकी क्रिया करता परंतु उसकी वह क्रिया निंदनीय और निष्फल कहलाती है उस प्रकार विना ज्ञानके जो क्रिया की जाती है, वह भी निष्फल और निंदनीयही कही जाती है, इसीलिए आचार्योंने सम्यग्ज्ञानका फल सम्यक्चारित्र बतलाया है । यह सम्यक्चारित्रही आत्मकल्याणके लिए विश्वासके योग्य है, ओर सुख तथा शांतिका मलकारण है । जिस प्रकार जो मनुष्य जैसा कहता है वैसा ही करता है, इसीलिए उसकी तीनों लोकों में पूजा होती है, और तीनों लोको में उसका यश फैल जाता है । अतएव आचार्योका उपदेश है कि माम्ब क्रियाएं ज्ञानसहितही होनी चाहिए जिससे कि मोक्षरूपी स्त्री अपनी दामी के समान बन जाय । भावार्थ - यहांपर ज्ञान शब्दसे आत्मज्ञान समझना चाहिए, इस संसारमें जितनी क्रियाएं कि जाती हैं उन सबसे कर्मोका बंध होता है, परंतु आत्मज्ञानके साथ-साथ जो क्रियाएं कि जाती हैं, वे सब शुभ वा अशुभ विचारपूर्वक की जाती है । आत्मज्ञानी पुरुष आत्माको दुःख देनेवाली अशभ क्रियाओंका त्याग कर देता है, और शुभ त्रिया-- ओंमें प्रवृत्ति करने लगता हैं । इस प्रकार वह सम्यग्ज्ञानी पुरुष पापक्रियाओका त्याग कर देता है और पापरहित क्रियाओंमें प्रवृत्ति करने लगता है, तथा पापरहित क्रियाओंमें प्रवृत्ति करनाही सम्यक्चारित्र कहलाता है। इसीलिए आचार्य महाराजने सम्यग्ज्ञानका फल सम्यकचारित्र बतलाया है । सम्यक चारित्रको पालन करनेवाला मनुष्य पापकार्योंका त्याग कर देता हैं, इसलिए वह विश्वासपूर्वक सुख और शांति प्राप्त कर लेता है, तथा अनुक्रमसे मोक्ष प्राप्त कर लेता है, इसलिए
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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