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________________ ( शान्तिसुधासिन्धु ) वशमें रखते हैं, इसलिए उनके हृदय में आने-जाने की कभी इच्छाभी नहीं होती है, इसलिए वे समस्त सवारियोंका त्याग कर देते हैं, और पैदलही गमन करते हैं । पैदल गमन करनेसे शुद्धि ठीक रीतिसे हो सकती है, और इसलिए अहिंसाव्रत ठीक रीतिसे पालन किया जाता है | अतएव नौवी, दसबी, ग्यारहवी प्रतिमावालोंको पैदलही गमन करना चाहिए, किसी सवारीपर चढ़कर नहीं जाना चाहिए | जीवास्तुष्यन्ति की क्व क्व माम्प्रतं मे वद प्रभो ? प्रश्न अर्थ - हे स्वामिन् ! अब कृपाकर यह बतलाइए कि इस संसारमें कौन-कौन जीव किस किस काममें संतुष्ट होते हैं ? उ. हृत्वा धनं चान्यजनस्य चौरास्तुष्यन्ति मूर्खाः कुकृति च कृत्या क्रीडामसारां शिशवोपि कृत्या तुध्यन्ति लब्ध्वा कृपणाः पराप्नम् कृत्वा हि धूर्ताः परपीडनादि तुष्यन्ति सन्तः स्वरसेऽन्य सिद्धौ । गतिविधिको सानाति तत्वं विरलास्ततश्च ૧૬૭ अर्थ- चोर लोग दूसरोंके धनको चुराकर संतुष्ट होते हैं, मूर्ख लोग किसी भी प्रकार के कुकर्मको करते हुए संतुष्ट होते हैं, वालक सब असार खेल कूदको करते हुएही संतुष्ट होते हैं, कृपण व कंजूष लोग दूसरोंके अन्नको खाकरही संतुष्ट होते | धूर्त लोम अन्य जीवोंको दुःख देकर संतुष्ट होते हैं, और सज्जन लोग या तो अपने आत्मजन्य आनंदम संतोष धारण करते है, अथवा अन्य जीवोंके सिद्ध होनेपर, वा अन्य जीवके किसी धर्म कार्यकी सिद्धि हो जानेपर संतोष धारण करते हैं । सो ठीक है इस संसार में अशुभ कर्मोकी गति बडीही विचित्र है । इस संसार में ऐसे मनुष्य बहुत ही थोडे है, जो पदार्थोके यथार्थ स्वरूपको जानते हों । भावार्थ- चोर लोग जबतक चोरी नहीं कर लेते, तबतक उन्हें कभी संतोष नहीं होता है । मूर्ख लोग जबतक कोई दुष्कृत्य नहीं कर लेते, जबतक किसीका काम नहीं बिगाड़ लेते, जबतक कोई अन्याय नहीं कर लेते, तबकत उन्हें संतोष नहीं होता है | बालक जवतक खेल-कूद नहीं कर लेते तबतक उन्हें कभी संतोष नहीं होता है, कंजूस लोग जबतक किसी दूसरेका अन्न नहीं खा लेते, जबतक अपने संग्रहमें एक दो पैसा नहीं डाल लेते, तबतक उन्हें संतोष नहीं होता हैं । धूर्त और नीच
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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