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________________ १९६ { शान्तिसुधासिन्धु ) अर्थ-- पहली प्रतिमासे लेकर आठवीं प्रतिभातकके श्रावक अपने नियत समयपर धर्मकार्योको किया करते हैं, और इसलिए, वे अपने कार्योकी सिद्धिके लिए किसीभी सवारीपर चढ़कर सर्वत्र भ्रमण किया करते हैं । परंतु नौवी प्रतिमासे लेकर ग्यारहवीं प्रतिमातकके श्रावक सदाकाल धर्मध्यान और स्वाध्यायमें तत्पर रहते हैं, बड़े बुद्धि मान होते हैं, भगवान जिनेन्द्रदेवकी आज्ञाका पालन किया करते हैं, और अपने चित्तको वशमें रक्खा करते हैं। इसलिए वे महापुरुष याचना करनेके दोषसे भयभीत रहते हैं और सब प्रकारकी सवारियोंका, त्याग कर धर्मकार्यके लिए पैदलही एक गांवसे दूसरे गांवको जाया करते हैं । भावार्थ- जहां तक गृहस्थाश्रम है, वहतिक तो सवारीका त्याग नहीं होता है; क्योंकि गहस्थलोग अपने व्यापार आदिके लिए परदेशगमन करतेही हैं, । पद मिलन श्रावनोंको दूर भागी मापन कारः पडता है, तथापि वे ऐसे देश में नहीं जाते जहां धर्मकार्य न बन सके अथवा रत्नत्रयमें हानि पहंचने की संभावना हो, तथा ऐसेही सवारीमे जाते हैं, जिससे धर्मकी हानि न हो। इससे ऊपर की आठवी प्रतिमावाले श्रावक यद्यपि आरंभके त्यागी होते हैं, तथापि परिग्रहके त्यागी न होनेके कारण वे सवारीपर चढ़ सकते हैं । नौवी प्रतिमा परिग्रहका त्याग हो जाता है, इसलिए यहासे सवारीका त्याग हो जाता है । परिग्रहका त्याग हो जाने के कारण तथा आरंभकाभी त्याग हो जाने के कारण, वे श्रावक अपने व्यापार आदिके लिए गमन नहीं करते, किंतु धर्मकार्यकेही लिए गमन करते हैं, और पैदलही गमन करते हैं। वे श्रावक अपने परिग्रहका त्याग कर देते हैं, इललिए यदि वे सवारीपर चढना चाहें तो उन्हें याचनाही करनी पडेगी, तथा याचना करना उनके पदस्थके विरूद्ध है. इसलिए वे याचना करनेसे बहुत डरते हैं । इसके सिवाय वे ध्यान और स्वाध्याय में तत्पर रहते हैं, इसलिए उन्हें चलने का कामभी बहुत थोडा पडता है । शास्त्रोंकी आज्ञाके अनुसार वे एक गांवमें नहीं रह सकते । इसलिए एक गांवसे दूसरे गांव तक जाते हैं, फिर दो चार दिन धर्मोपदेश देकर दूसरे गांव में चले जाते हैं। वे त्यागी श्रावक अपनी इन्द्रियोंकोभी वशमें रखते हैं, तथा मनकोभी
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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