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________________ { शान्तिसुधासिन्धु ) है, तथा उनके अभावमें उनके प्रतिमाकी पूजा करना परोक्षपूजा कहलाती है। प्रतिमाकी पूजा अभिषेक पूर्वकही होती है, और अभिषेक पंचामृताभिषेक सर्वोत्कृष्ट होता है। अभिषेकके अनंतर आव्हान, स्थापन सन्निधीकरण, पूजा और विसर्जनके भेदसे पूजाके पांच अंग कहलाते हैं । इनमेंसे पूजाके जितने अंग कम होते है, उतनीही फल में कमी हो जाती है । अथवा भगवान अरहंत देवकी वा उनके शरीरकी वा उनके प्रतिमाकी पूजा करना द्रव्यपुजा है। भगवान तीर्थंकर परमदेवके जहांजहां मोक्ष कल्याणक हए है, वहां-वहाकी पूजा करना, या की दम : करना क्षेत्रपूजा कहलाती है । तथा भगवान तीर्थंकर परमदेवके कल्याणक जिस-जिस समय हुए हैं, उसकी पूजा करना बा अष्टान्हिकाके दिनोंमें नंदीश्वर जिनालयोंकी पूजा करना कालपुजा है । इसके सिवाय विधान करना, प्रतिष्ठा करना, स्तुनि करना, प्रभावना अंगकी वृद्धि के लिए रथोत्सव करना, आदि सब पुजा कहलाती है । यह सब प्रकारकी पूजा पापोंका नाश करनेवाली है, और पुण्यको बहानेवाली है, इसलिए प्रत्येक गृहस्थको श्रावकोंको प्रतिदिन पूजा करना अत्यावश्यक है। समवशरणमें चैत्यवृक्षों के पीठपर, तथा मानस्तंभकी पीठपर, तथा और अनेक स्थानोपर भगवान जिनेंद्रदेवकी प्रतिमा विराजमान रहती है, और भव्य जीव, पहले उन प्रतिमाओंकी पूजन कर, फिर गंधकूटी में भगवानके दर्शन करने के लिए जाते हैं । उससे यह स्पष्ट सिद्ध हो जाता कि गहस्यों के लिए जिनप्रतिमाका पूजन अत्यावश्यक है। जिन प्रतिमाका पूजन किए विना उनका गृहस्थसम्बन्धीपाप कभी नष्ट नहीं हो सकता। हां ! जो लोग अपने मोहका त्याग कर, गृहस्थ अवस्थाका त्याग कर देते हैं और निग्रंथ दीक्षा लेकर मनिव्रत धारण कर लेते हैं वेभी भगवान अरहंत देवकी प्रतिमाको नमस्कार करते हैं, और उनकी स्तुति करते हैं, परन्तु अष्टद्रव्यका अभाव होनेसे द्रव्यपूजा नहीं करते किंतु भावपूजा किया करते है, तथा जो मुनि आत्मध्यानमें लीन रहते हैं वे मुनि अपने आत्माकोही अत्यंत शुद्ध बनाकर उसे सिद्धोंके समान मान लेते हैं, और फिर उसीका ध्यान और स्तुति आदि किया करते हैं। प्रश्न - मान्यतादिः कुतो देव नरपावें च तिष्ठति ? अर्थ – हे देव ! अब कृपाकर यह बतलाइये कि इस मनुष्यके पास मान्यता वा शांति आदि किस मारणसे ठहर सकती हैं ?
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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