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________________ १७८ ( शान्तिसुधागिन्धु ) नहीं हो सकता । स्त्रियां मोक्ष नो जा ही नहीं सकती. तथा कामका फल संतान है, वह स्त्रियों की कहलाती न हों, वह पुरुष की ही कहलाती है. इसलिए कामपुरुषार्थकी मुख्यता पुरुषकेही मानी जाती है । अर्थपुरुषार्थ स्त्रियोंस होता नहीं, वहभी मम्यतासे पुरुषोमेही सिद्ध किया जाता है, और धर्मपुरुषार्थमेंभी स्त्रिया सहायक मात्र हैं। दान देने में सहायक है, पूजा करने में सहायक हैं, वा अन्य समस्त धार्मिक कार्योम वे पुरुषकी सहायक मानी जाती हैं । इसलिए धर्मपुरुषार्थकी मुख्यताभी पुरुषोंकही कही जाती है। इस प्रकार शूद्रोंकेभी पुरुषार्थोकी सिद्धि नहीं होती, इसरो स्पष्ट सिद्ध हो जाता है, कि जिनके संस्कार होते हैं, वे ही पुरुषार्थीको सिद्ध कर सकते हैं। चारों पुरुषार्थोंम सब लोकिक कार्य भी आ जाते हैं, और सब पारलौकिक कार्य भी आ जाते हैं, । इसलिए जिसके मंकार होते है, वे दोनों लोकोक कमांको सिद्ध कर लेता हैं । यज्ञोपवीत आदि धर्मशास्त्रों में कहे हए समस्त संस्कारोको करा देना, तथा विद्या-कला आदि सीखनेके लिए गुरुकुलमें भेज देना, माता-पिताका काम है । तथा लोगोंके धार्मिक कार्यों में किमी प्रकारका विघ्न न आने देना, धार्मिक कार्योका सब सुभीता कर देना, गुरुकुलोंका यथेष्ट प्रबन्ध करना तथा पठन-पाठन कला- योग धंदे आदि सबके साधन उपलब्ध कर देना, राजाका काम है। गर्भ में आतेही बालकके संस्कार प्रारम्भ हो जाते हैं। जैसे संस्कार होते हैं, वैसाही प्रभाव बालकपर पड़ता है, यदि संस्कार धामिक होते हैं, और पंचपरमेष्ठी के वाचक यथार्थ मंत्रोंसे किये जाते हैं, तो बालकपर धार्मिक प्रभाव पड़ता है, और वह बालक धर्मात्माही होता है, यदि संस्कार मिथ्यामंत्रोंके द्वारा किए जाते हैं, तो उनका प्रभाव उस चालकपर मिथ्यारूपही पड़ता है, और वह बालक मिथ्यादृष्टि होता है। यदि उस बालकके कोई किसी प्रकारके संस्कार नहीं होते तो वह बालक सब संस्कारोंसे रहित अबोध होता है । यदि दुराचार आदिके द्वारा निकृष्ट और नीचतापूर्ण संस्कार किए जाते हैं, तो वह बालक निकृष्ट और नीचहीं होता है, इसलिए प्रत्येक माता पिताको अपने संतानका धार्मिक संस्कार करना चाहिए । और प्रत्येक राजाको उन संस्कारों के साधन उपलब्ध कर देना चाहिए । जो माता, पिता अपने बालकोंका संस्कार नहीं करते, वे उस संतानके द्वारा होनेवाले अनेक पापोंके साधक बन जाते हैं, और इसलिए महापापी कहलाते हैं ।
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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