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( शान्तिसुधासिन्धु )
जाता है । इस प्रकार राजाको परीक्षा प्राणियोंकी रक्षा करनेसे होती है । जो राजा अपनी प्रजाको दुःखी करता है, वा शिकार आदिके द्वारा निरपराध जीवोंको मारता है । वह राजा कभी श्रेष्ठ नहीं कहला सकता । राजा अपनी प्रजाका पिता कहलाता है, तथा प्रजा उसकी संतानके समान मानी जाती है । जिस प्रकार उसके राज्यमें रहनेवाले मनुष्य सब उसकी प्रजा कहलाते है, उस प्रकार राज्यमें रहनेवाले पशपक्षी वा जलचर जीवभी सब इसकी प्रजा कहलाती हैं । इसलिए जिस प्रकार पिता अपनी संतानका पालन-पोषण कर उनको सुखी रखता है, उस प्रकार राजाकोभी पशु, पक्षी, मनुष्य आदि समस्त प्रजाका पालन-पोषण करते हुए सुखी रखना चाहिए। जो राजा इस प्रकार अपनी प्रजाको सूखी रस्त्रता है, ब्रही राजा श्रेष्ठ कहलाता है, जो राजा अपनी प्रजा को दूर रखता है, कई मामा हाने योग्य कभी नहीं हो सकता । यह राजाकी परीक्षाका उपाय है । इस प्रकार शास्त्री लोगोंकी परीक्षा शास्त्रार्थ में होती है । शास्त्रार्थ करते समय जो शास्त्री दूसरे की असत युक्तियोंका खंडन कर दे, और अपनी सत्युक्तियोंका मंडन कर, पदार्थके यथार्थ स्वरूपको सिद्ध कर देवे, वहीं श्रेष्ठ शास्त्री कहलाता है। इसके लिए अनेक शास्त्रोंके पठन-पाठन करनेकी आवश्यकता होती है । जो शास्त्री अनेक प्रकारके अनेक शास्त्रोंका पठन-पाठन कर आत्मा आदि पदार्थोंके स्वरूको यथार्थ रीतिसे जानलेता है, और फिर धेष्ठ युक्तियोंके द्वारा पदार्थोके अयथार्थ स्वरूपका खंडन कर, अपने यथार्थ स्वरूपका मंडन करने में चतुर होता है, वही शास्त्री, श्रेष्ठ शास्त्री कहलाता है । जो शास्त्री थोडेसे खंडशास्त्रोंकों पढकर अपनी असत् युक्तियोंके द्वारा पदार्थोके अयथार्थ स्वरूपका मंडन करता है, वह शास्त्री कभी श्रेष्ठ नहीं कहला सकता । यह सब मुख्य परीक्षाका उपाय बतलाया है । अन्य सरल परीक्षाका उपाय चाहे जिस समय और चाहे जिस प्रकार किया जा सकता है।
प्रश्न- राजा पिता च पापी कः संसारे बद में गुरों?
अर्थ- हे भगवन् ! अब कृपाकर यह बतलाइए कि इस संसारमें कौनसा राजा पापी कहलाता हैं, और कौनसा पिता पापी कहलाता है?