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________________ (शान्विसुधामिन्धु ) अर्थ- हे स्वामिन्! अव कृपाकर यह बतलाइए कि मनुष्यों की शोभा क्या है ? १६७ उ / शोभा जनानां प्रियसत्यवाणी वाण्याश्च शोभा गुरुदेव भक्तिः । भक्त्याविशोभा स्वपरात्मबोधा बांधस्य शोभा समता सुशान्तिः अर्थ - इस संसार में मनुष्योंकी शोभा मधुर और सत्यवाणी बोलना है, वाणीको शोभा भगवान अरहन्त देवकी भक्ति करना है और निग्रंथ गुरुकी भक्ति करना है, तथा देवभक्ति और गुरुभक्तिकी शोभा स्वपरभदविज्ञान है, और स्वपरभेदविज्ञानकी शोभा, समता धारण करना और अपने आत्मामें शांति स्थापन करना है 1: भावार्थ- बहुत से लोग अपनी शोभा बढानेके लिए अनेक प्रकारके बहुमूल्य वस्त्र पहनते हैं, बहुमूल्य आभूषण पहनते हैं, और केशर - चंदन आदि लगाकर अपनी शोभा बढाते हैं. परंतु जब वे कडवेयचन बोलते हैं, अथवा मिथ्यावचन बोलते हैं, तब उनकी वह सब शोश नष्ट हो जाती है. सबलोग उनको बुरा कहते हैं, और सबलोग उनको धिक्कार देते हैं, सत्य और मधुर भाषण करनेवालेको सत्र लोग आदरकी दृष्टि से देखते हैं, और सबलोग उसका विश्वास करते है । वास्तवमें देखा जाय तो सत्य भाषण करनाही मनुष्यकी मनुष्यता है, इसलिए प्रत्येक मनुष्यको अपने जीवन में सत्य भाषणही करना चाहिए। इस प्रकार उस सत्य भाषण की शोभा भगवान अरहंतदेवकी भक्ति करने से, उनकी स्तुति करने से, वा उनकी पूजा करनेसे होती है, अथवा निग्रंथ वीतराग गुरुको स्तुति-भक्ति करनेसे होती है। जो मनुष्य सत्य भाषण करता हुआ भी देव और गुरुओंकी स्तुति नहीं करता, वह सत्य भाषणभी सफल नहीं माना जाता, सत्य भाषणकी सफलता देव, गुरुको स्तुति करनेमेंही है, तथा देव गुरुकी स्तुति वा भक्ति करनेकी शोभा, अपने आत्माका तथा अन्य जीवोंके स्वरूपका यथार्थ ज्ञान है। जो पुरुष देव, गुरुकी भक्ति करता हुआ भी अपने आत्माके यथार्थ स्वरूपको नहीं समझता, तथा अन्य जीवोंके स्वरूपको अपने आत्माके समान नहीं समझता, उसकी देव, गुरु भक्ति वा स्तुति व्यर्थही समझनी चाहिए। इसका कारण यह है कि देवभक्ति वा गुरुसेवा आत्मज्ञानके लिएही की जाती हैं। देव 1
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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