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( शान्तिसुधासिन्थ )
उनका संह्नन उत्कृष्ट संहनन नहीं होता, इस लिए वे निर्जन वनाम नहीं रह सकते. तथापि व्रत-उपवास करने में वा परिग्रह सहन करनेमें, वा उपसर्ग सहन करने में वे किमी प्रकारकी कमी नहीं करते । वे मुनि इंद्रियजन्य विषयोंके सर्वथा त्यागी होते हैं, और आत्मजन्य सच्चिदानंदकी मति होते हैं। उनके चरण कमल अत्यन्त पवित्र होते है, और उनमें भव्यजीवोंको मोक्ष प्राप्त करानकी शक्ति विद्यमान रहती है। इसलिए अनेक भव्यजीव सदाकाल उनकी सेवा-भक्ति किया करते है, और महापुण्यका उपार्जन कर, तथा सम्यग्दर्शन धारण कर मोक्षका यथार्थमार्ग धारण कर लेते हैं । बर्तमानमें बहतसे श्रावक वर्तमानके पनियोमें मांकित रहते हैं. उनकी शारण है, कि वर्तमानके मुनि अट्ठाईस मूलगुण धारण नहीं कर सकते । परंतु यह उनकी भूल है। वर्तमान में अनेक मुनियोंकद्वारा अट्ठाईस मूलगुण निर्दोष रोसिसे पालन किया जा रहा हैं, तथा साथमें उत्तरगुणभी पालन किया जा रहा है । वर्तमानके कितनेही आचार्य और मुनि घोर उपसगोंको सहन करते हैं, कठिन परिषहोंको सहन करते हैं, और कितनेही व्रत उपवास कर घोर तपश्चरण करते हैं। यदि उनकी भावना और अंतरंग परणामोंको देखा जाय तो, उनकी भावना सदा आत्मकल्याणमें लगी रहती है, अथवा समस्त भव्यजीवोंको मोक्षमार्गमें लगानेके लिए उनकी भावना रहती है । उनके परिणाम सदाकाल आत्म-चितवनमें लगे हैं, अथवा अन्य-जीवोंके कल्याण करने में लगे रहते हैं । यह सब देखकर बड़े-बडे राजा महाराजाभी उनकी सेवा-भक्ति करते हैं । और उनका उपदेश सुनकर अपने आत्माका हित करते हैं । इसलिए उन मुनियोंके विषय में किसी प्रकारकी शंका करना, अपने आत्माको बंचित करना है, अपने पुण्य कमानेके साधनको नष्ट करना है, और अपने आत्मकल्याणके समयको खो देना है। इसलिए प्रत्येक भव्यजीवको अपनी समस्त शंकाएं दूर कर देनी चाहिए, और उन मुनियोंको सेवा-भक्ति कर तथा उनको आहारदान देकर, ग्रंथदान देकर, तथा जिस तरह बने, उनकी वैयावृत्य कर, पुण्य प्राप्त करना चाहिए, और अपना मनुष्यजन्म सफल कर लेना चाहिए । यही मनुष्य जन्मका सार है ?
प्रश्न- शोभा जनानां वद मे गुरो का?