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________________ (शान्ति सुधासिन्धु ) ज्येष्ठः कनिष्ठः सुजनोपि दुष्ट स्तीव्रोपि मन्दः प्रबलोप्यशक्तः । नीच कुलीनः विवशो वशः स्यात् बुद्ध्वेति तत्त्याग विधिविधेयः अर्थ अपने आत्मजन्य आनन्दका नाश करनेवाला यह कामदेव अत्यन्त दुष्ट है, जो पुरुष ऐमें इस कामदेवके वशीभूत हो जाता है, वह चतुर हो कर भी मूर्ख कहलाता है, तीव्र बुद्धिका हो कर भी कुंठित बुद्धिवाला कहलाता है, क्षमाको धारण करनेपर भी कोटी कहलाता है, शूरवीर हो कर भी भयभीत कहलाता है. सबसे बड़ा हो कर भी सबसे छोटा कहलाता है, सज्जन हो कर भी दुष्ट कहलाता है। तीव्र होकरभी मंद कहलाता है, बलवान होकरभी असमर्य कहलाता है, कुलीन हो कर भी नीच कहलाता है, और स्वाधीन हो कर भी पराधीन कहलाता है, यह समझकर इस कामदेवका त्याग करनाही मनसे अच्छा है । — १६१ 1 भावार्थ - इस संसार में यह कामदेव सबकी बुद्धि भ्रष्ट कर देता हैं, सबको निर्लज्ज बना देता है, सबको महापापी बना देता है, और सबको अनेक प्रकारके महादुःख दिया करता है, रावण बहुत बडा प्रतापी राजा था. अर्द्ध चक्रवर्ती था, महाविद्वान् था और सर्वश्रेष्ठ देवभक्त था । तथापि केवल कामदेव के वशीभूत हो करही उसने सीताका हरण करनेका महानीच कार्य किया था । ऐसे बड़े कुलमें उत्पन्न हो कर ऐसा नीच कार्य करनाही आजतक उसकी निंदा करा रहा है। श्री रामचंद्र एक आदर्श महापुरुष राजा थे, अत्यन्त योद्धा थे, मोक्षगामी थे, और सर्वगुणसंपन्न थे, तथापि सीताका हरण होनेपर वे विव्हल हो गये । वृक्षोंसे भी सीताकी खबर पूछते फिरे, यह कामदेव के आधीनताका फल है, इस संसारमें हजारों लाखों योद्धाओंको जीतनेवाले अनेक शूर-वीर हैं, परंतु यथार्थ शूर-वीर वही कहलाता है, जो स्त्रियोंके कटाक्षसे कभी घायल नहीं होता. अर्थात् जो कामदेवके वशीभूत कभी नहीं होता। ऐसे शूर-वीर इस संसार में बहुत थोडे होते है, और जो होते हैं, वे फिर इस संसार में परिभ्रमण नहीं करते, फिर तो वे चरित्र धारण कर मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं । } प्रायः यह समस्त संसार कामदेवके वशीभूत है। यह कामदेव सत्रको निर्लज्ज बना देता है, इसीलिए यह मनुष्य अपनी लज्जा छोड़कर
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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