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________________ ( शान्तिसुधासिन्धु ) देखता. शिरी नगर दिमें प्रवेश करता हुआ भी कहीं नहीं जाता, गमन करता हआ भी गमन नहीं करता, किमी पदार्थको ग्रहण करता हुआ भी ग्रहण नहीं करता, भोजन करता हुआ भी भोजम नहीं करता, सोता हुआ भी नहीं सोता, किसी कार्वाको करता हुआ भी नहीं करता, और होता हुआ भी नहीं होता । इसलिए कहना पड़ता है, कि सम्यग्दृष्टिको सुख देनेवाली महिमा अचिन्तनीय है । वह संसार में रहता हुआ भी जिन कहलाता है, और कर्ममल कलंकमे रहित पुरुषोंक समान माना जाता है। भावार्थ-आत्मामें अनेक गण हैं, परंतु उन सबमें एक सम्यग्दर्शन ही ऐसा उत्तम गुण है. कि जिसके होनेपर अन्य सब गुण प्रगट हो जाते हैं, और यह आत्मा इस संसार समद्रसे पार हो जाता है । इसका कारण यह है, कि मम्यग्दर्शनके प्रगट होनेपर स्वपरभेदविज्ञान प्रगट हो जाता है, तथा स्वपरभेद विज्ञान प्रगट होनेसे आत्मा और परपदार्थोंका यथार्थ स्वरूप प्रगट हो जाता है, आत्मा और परपदार्थोंका यथार्थ स्वरूप प्रगट होनेसे, यह आत्मा परपदार्थोका मोह छोड़ देता है, और फिर वह अन्य किसी भी पदार्थसे कोई सम्बन्ध नहीं रखता । फिर वह आत्मा, अन्य समस्त पदार्थोका त्याग कर, तथा क्रोधादिक कषायोंका सर्वथा त्याग कर केवल-आत्मामें लीन हो जाता है। उस समय इंद्रियोंका सब व्यापार छूट जाता है । इसलिए बह देखता हुआ भी कुछ नहीं देखता । यद्यपि वह इंद्रियोंसे समस्त पदार्थोंको देखता वा जानता है, परन्तु वह उन पदार्थोंसे कोई प्रयोजन नहीं रखता, और उन पदार्थोसे वह कोई किसी प्रकारका मोह वा ममत्व नहीं रखता है. इसलिए वह देखता हुआ भी न देखने के समान ही माना जाता है । इसी प्रकार वह आहारादिकके लिए नगरादिकमें आता-जाता है, परन्तु उस समय में भी वह आत्म-चितनमें ही लगा रहता है । भोजन करता हुआ भी आत्म-त्रितबनमें लगा रहता है, और यहां तक लगा रहता है, कि भोजन करता हुआ भी सातवें गुणस्थानमें जा पहुंचता है। इसलिए वह भोजन करता हुआ भी न करने के समान माना जाता है । इसी प्रकार सोता हुआ भी वह अन्य किसी पदार्थका चितवन नहीं करता, उस समय भी वह आत्माके गुणोंका चितवन करता रहता है, इसलिए वह सोता हुआ भी न सोनेवालेके
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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