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________________ प्रश्न वद रक्षकतुल्यत्वाच्वोरोंस्ति को नृपः प्रभो ? अर्थ - हे प्रभो ! अब कृपाकर यह बतलाइए कि चोर और राजा दोनों के साथ रक्षक लोग चलते हैं, फिर भला राजा और चोर में क्या अन्तर है ? तीसरा अध्याय वस्तुस्वरूप वर्णन - ― उत्तर राज्ञः सामन्तादपि भृत्यवर्गः, चलत्यहो चौरसमन्ततश्च । कोsस्त्यावयोमें बद देव भेदो, राजा यतोयं क्रियते हि चौरः ॥ २०३ ॥ येनेव मार्गेण नृपश्च गन्तुं, वांच्छेद्यदा गच्छति तेन भृत्यः । वांच्छेच्च भृत्यः खलु येन नेतुं, चौरस्तदा गच्छति तेन मौनात् ॥ २०४ ॥ अक्षाणि यः स्वात्मवशीकृतानि, यथेति चाक्षाणि वशं भवन्ति । अक्षाश्रितो यश्च भवेत्प्रमुढो नयन्ति चाक्षाण्यपि यत्र तत्र ॥ २०५ ॥ अर्थ - देखो जिस समय राजा चलता है उस समय उसके बहुतसे रक्षक वा नौकर-चाकर उसके चारों ओर चलते हैं। इसी प्रकार किसी पकड़े हुए चोरके भी चारों और रक्षक लोग चलते है । 4
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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