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________________ ( शान्तिसुधासिन्धु ) हे देव ! फिर इन दोनोंमें क्या भेद है, जिसमें कि, यह राजा है, और यह चोर है. ये किस प्रकार मालूम हो । इसका मीधासा उत्तर यह है कि, राजा जिस मार्गसे जानेकी इच्छा करता है, रक्षकोंको उमी मार्गम उसके साथ चलना पडता है, परन्तु चोरके साथ यह बात नहीं होती। चोरको उसी मार्गसे चलना पड़ता है जिस मार्गसे रक्षक लोग उसे ले जाते हैं । जिस मार्गसे रक्षक लोग उस चोरको ले जाना चाहते हैं उमी मार्गसे बह चोर चुपचाप उनके साथ चला जाता है. ठीक इसी प्रकार जिन महापुरुषोंने इन्द्रियों को अपने वशमें कर लिया है, वे इन्द्रियां फिर उन्हीं महापुरुषोंके वश में रहती हैं, उन्हीं की ईच्छानुसार चलती हैं, परन्तु जो मूर्ख उन इन्द्रियोंके आधीन रहते है, उनको वे इन्द्रियां यहां वहां चाहे जहां पटक देती हैं। भावार्थ- यद्यपि राजा और चोर दोनों के चारों ओर रक्षक लोग चलते है । तथापि राजा और चोर में स्वाधीन और पराधीनका अन्तर है । राजा स्वाधीन है, वह अपनी इच्छानुसार चाहे जहां जा सकता है,चाहे जहाँ ठहर सकता है। रक्षक लोगोको तो सर्वत्र राजाकी आज्ञा माननी पडती हैं, जहां राजा जाना है, वहां जाना पड़ता है, और राजा जहां ठहरता है, वहां ठहरना पड़ता है । राजा सब तरह स्वतंत्र है, और रक्षक लोग उसके आधीन है, परंतु चोरके लिए यह बात नहीं है । चोर पराधीन है। उसको रक्षकोंके साथ चुपचाप जाना पड़ता है, जहां रक्षक ले जायेंगे वहीं उसे जाना पडेगा और रक्षक जहां ठहरेंगे वहां उसे ठहरना पडेगा । इस प्रकार जो महापुरुष इन्द्रियोंके आधीन नहीं होते, इन्द्रियोंको अपनी आज्ञामें रखते है, ऐसे महापुरुष राजाके समान स्वतंत्र स्वाधीन कहलाते हैं, और इन्द्रियां उनके सेवकके समान उनके आधीन रहती हैं, परन्तु जो लोग इन्द्रियोंके आधीन रहते हैं, इन्द्रियोंको अपने आधीन नहीं कर सकते, इन्द्रियोंका निग्रह नहीं कर सकते वे पुरुष चोरके समान परतंत्र वा पराधीन कहलाते हैं, उसी प्रकार रक्षक लोग चोरको ले जाकर बन्दीगृहमें रखते हैं, उसी प्रकार वे इन्द्रियां भी उस पराधीन मनुष्यको नरक वा निगोदमें ले जा कर पटक देती हैं । अतएव जो लोग राजाके समान स्वाधीन रहना चाहते है, चोरके समान पराधीन नहीं रहना चाहते
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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