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________________ ( शान्तिसुधासिन्धु ) अर्थ- गुण और दोषोंको न जाननेवाला कोई मूर्ख मनुष्य केवल अपने आत्माके आश्रय रहनेवाले और समस्त परिग्रहोंसे रहित ऐसे साधुवोंको देखकर उन्हें निर्दयता के साथ मारते हैं, उनमें दुष्ट वचन कहते हैं, उनपर क्रोध करते हैं और अपनी अज्ञानता के कारण उनकी निंदा करते हैं, तथा गुण-दोषोंके जानकार कोई-कोई चतुर मनुष्य उन साधुओंकी स्तुति करते हैं, उनको नमस्कार करते हैं, उनकी सेवा करते हैं, और भक्ति करते हैं । परन्तु दोनों ही अवस्थामें वे साधु अपने धर्मसे कभी चलायमान नहीं होते । वे साधु ज्योंके त्यों निश्चल बने रहते हैं । इस संसारमें जिस जीवकी जैसी बुद्धि होती है, वह पुरुष वैसीही सुख - दुःख देनेवाली क्रियाएं करता है। जिसकी अच्छी बुद्धि होती है, वह अच्छे सुख देनेवाली क्रियाएं करता है, और जिसकी बुद्धि अच्छी नहीं होती, वह दुःख देनेवाली अशुभ क्रियाएं करता रहता है । यही समझकर भव्य जीवोंको कषायों का त्याग कर देना चाहिए और अपने आत्मा के प्रदेशों में निमग्न हो जाना चाहिए। १३९ समस्त चे साधु भावा- मुनि लोग किसीमे कुछ नहीं चाहते, वे लालसाओंसे रहित और समस्त परिग्रहोंसे रहित होते हैं । सदाकाल अपने आत्मामें लीन रहते हैं, और सदाकाल जीवोंके कल्याणका चितवन करते रहते हैं । वे स्वयं मोक्षमार्ग में लगे रहते हैं, और अन्य जीवोंको मोक्षमार्ग में लगाते रहते हैं । ऐसे साधुओं को भी बहुतसे निर्दयी, मूर्ख लोग बुरे वचन कहते हैं, कोई-कोई अज्ञानी उन्हे मारते हैं, कोई उनकी निंदा करते हैं, और कोई उनपर क्रोध करते हैं । ऐसी अवस्था में भी वे साधु न तो क्रोध करते हैं, न दुःखी होते हैं, और न अपने ध्यान से चलायमान होते हैं। वे तो अपने आत्मामें लीनही बने रहते हैं। यदि उनका उपसर्ग दूर हो जाता है, तो वे उसको शुभाशीर्वाद देकर उसको मोक्षमार्ग मेंही लगाते हैं । इसी प्रकार यदि कोई चतुर मनुष्य उनको नमस्कार करता है, वा उनकी स्तुति करता है, वा सेवा - भक्ति करता है, तो भी वे प्रसन्न नहीं होते, उस समय भी वे अपने आत्मामें लीन बने रहते हैं । इस प्रकार वे साधु निंदा करनेवाले और स्तुति करनेवाले दोनोंको समान दृष्टिसे देखते हैं । यह
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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