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________________ ( शान्तिसुधासिन्धु ) पान नहीं करता, तबतक अपने मोक्षरूप बिवासस्थानमें नहीं पहंच सकता । अतएव मोक्षरूप निवासस्थानको प्राप्त करने के लिए सबसे पहले मोहनीयकर्मको नष्ट कर सम्यग्दर्शन प्राप्त कर लेना चाहिए । जिससे कि विषयोंकी अभिलाषाका त्याग हो जाय और यह आत्मा मोह मायाका त्याग कर आत्मामें लीन होय जाय और शीघ्र ही मोक्ष प्राप्त कर ले। प्रश्न- प्रतिक्रमणकीपि विषकुम्भः प्रपूर्यते । अप्रतिक्रमणका मृतकुम्भ: कथं वद ।। अर्थ- हे भगवान् । यह रनलाइये लिः प्रतिगमण करनेवाला पुरुष किस प्रकार अपने विपकेघडेको भर लेता है, और प्रतिक्रमण न करनेवाला भी अमतके घडेको किस प्रकार भर लेता है ? भावार्थ- प्रतिक्रमण करनेवाला अशम काँका बंध किस प्रकार कर लेता है, और प्रति कम ग न करनेवाला शुभकर्मोका गंध किस प्रकार कर लेता है ? उत्तर - प्रतिक्रमगकं कुर्वन् मिथ्यात्वेन भ्रमेच्चिरम् । प्रतिक्रमणहीनोपि सम्यक्त्वेन बजेच्छिवम् ॥ १९४ ॥ नाप्रतिक्रमणं कार्य नियं स्वप्नेपि धीमता। प्रतिक्रमणयोगोपि किंचित्स्यात्पुण्यदर्शकः ॥ १९५ ॥ क्रियतेऽशुभनाशाय शुभाप्त्यै व्यवहारतः । निश्चयाच्छुद्धसिद्धच च मोक्षार्थाय निरंतरम् ॥ १९६॥ स्वभावे भूयते स्वस्थो रागद्वेषादिदूरगे । यतः स्यात्स्वात्मसाम्राज्यं निजाधीनं निरंतरम् ॥ १९७॥ अर्थ- इस संसार में प्रतिक्रमण करता रहता हुआ भी यह जीव मिथ्यात्वकर्म के तीव्र उदयसे चिरकाल तक संसारमें परिभ्रमण करता रहता है । तथा प्रतिकमण न करनेवाला मनुष्य भी सम्यग्दर्शनके निमित्तसे मोक्ष प्राप्त कर लेता है, इसलिए बुद्धिमान पुरुषोंको स्वप्नमें भी प्रतिक्रमणका अभाव कभी नहीं करना चाहिए, क्योंकि प्रतिक्रमण करनेसे कुछ पुण्यकर्मका बंध अवश्य होता हैं ।
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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