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परिशिष्ट
आहार सम्बन्धी ४६ दोषों का विवरण मूलाचारके पिण्ड-शुद्धि अधिकारमें मुनियोंके आहार सम्बन्धी ४६ दोषोंके नाम निम्न प्रकार आये हैं
सोलह उदगम दोष १. औद्देशिक, २. अध्यधि, ३. पूति, ४. मित्र, ५. स्थापित, ६. बलि', ७ प्रावर्तित, ८. प्रादुकार, ६. क्रोत, १० प्रामृष्य, ११. परिवर्तक, १२. अभिघट, १३. उद्धिन्न, १४. माला रोह, १५. आच्छेय और १६. अनीशार्थ।
इनके सिवाय अधाकर्म नामका एक महादोष और भी है जो पञ्चसूनासे रहित हैं तथा मथके आश्रित है । षट्काय जीवोंके वधका कारण होनेसे महादोष कहा गया है। विदित होनेपर मुनि ऐसा आहार नहीं लेते। औद्देशिक आदि दोषोंकी संक्षिप्त परिभाषा इस प्रकार है
१. औद्देशिक-सामान्यजनको उद्देश्य कर बनाया गया आहार उद्देश है, पाखण्डो साधुओंको लक्ष्य कर बनाया गया अन्न समुद्देश है। आजोबक, तापसो, बौद्ध भिक्षुक तथा छात्रोंको लक्ष्यकर बनाया हुआ अन्न आदेश कहलाता है और निन्य साधओंको लक्ष्यकर बनाया हुआ समादेश है। यह चारों प्रकारका आहार औद्देशिक आहार कहलाता है। यह आहार खासकर मेरे लिये हो बनाया गया है, ऐसा ज्ञान होने पर भो जो साधु उस आहारको लेते हैं उन्हें यह औद्देशिक दोष लगता है।
२. अध्याधि दोष-श्रावका अपने लिये भोजन बना रहा था उसो समय किसो साधुको आया देख उसमें जल तथा चावल आदि अधिक डाल देना अध्यधि दोष है ।
३. पूति दोष-प्रासुक आहार भी यदि अप्रासुक–सचित्त आदिसे मिश्रित हो तो वह पूति दोष कहलाता है। वह चूल्हा, ओखलो, कलछी, बर्तन तथा गन्धके भेदसे पांच प्रकारका है । जैसे इस नये चूल्हे पर भात बनाकर पहले साधुको दूंगा तत्पश्चात् अपने काममें लगा, इस भावसे