________________
१६२
सम्यक्षारित्र-चिन्तामणिः
त्रयोदश प्रकाश
संयमासंयम अधिकार
मंगलाचरणम्
संसाराब्धिनिमग्न जन्तुनिवहानुद्धर्तुं कामं जिनंनिर्दिष्टां सुबुढां सुरत्ननिभूतां रस्नत्रयीं पावनीम् । नौकां ये लम्प निर्वृतिपुरीं गच्छन्ति संमीबत
स्तानेतान् सुगुरून् गुरून् गुणगणे नित्यं नमस्याम्यहम् ॥ १ ॥
अर्थ - संसार सागर में निमग्न जोवसमूहोंका उद्धार करने के इच्छुक जिनेन्द्र भगवन्तोंके द्वारा निर्दिष्ट, सुदृढ़, सुरत्नोंसे परिपूर्ण और पवित्र रत्नत्रय रूपी नौकाका अवलम्बन लेकर जो प्रमोद से निर्वाणपुरोकी ओर जा रहे हैं तथा गुणों के समूह से श्रेष्ठ हैं उन इन सद्गुरुओं को मैं नित्य ही नमस्कार करता हूं ॥ १.
1
आगे देशचारित्र प्राप्त करनेके लिये अन्तरङ्ग कारणभूत कर्मोकी क्या कैसो दशा होती है, इसका संक्षेपसे वर्णन करते हैं-
वैशचारित्र संप्राप्यं कर्मणां कीदृशो स्थितिः । भवतोति विचारोऽयं संक्षेपाविह दीयते ॥ २ ॥ संयमासंयमो लोके चारित्रं वेशतो मतम् । यस हिसानिवृत्तत्वात्संयमो व्यवह्रियते ॥ ३ ॥
सत्वात्स्थावर हिंसायाः कथितोऽसंयमस्तथा । विवक्षाभेदतः सार्धं संयमासंयमो
मलः ।। ४ ।।
देशतः सर्वतोऽपि वा । लोके मिथ्यादृष्टेरनर्हता ॥ ५ ॥
सध् दृष्टे रेवचारित्रं संघर्तुमर्हता
अर्थ — देशचारित्रको प्राप्तिके लिये कर्मोकी कैसी स्थिति होतो है, यह विचार संक्षेपसे यहां दिया जाता है । संयमा· संयमको लोकमें देशचारित्र माना गया है। त्रस हिंसा से निवृत्त होनेके कारण संयमका व्यवहार होता है और स्थावर हिसाके विद्यमान रहने से असंयम कहा गया है। विवक्षाभेदसे संयमासंयम एक साथ माना गया है। देशचारित्र और सकलचारित्रको धारण करनेको योग्यता सम्यग्दृष्टिके
1
!
!
}