________________
नवम प्रकाश
१२५
आहारके तस्मिक्षे च षष्ठमेकं भवेदिह । वेत्रिपिके भवेवायं गुणस्थानवतुष्टयम् ॥ १७ ॥ तन्मिये नन विजेयं ततीयस्थानमन्तरा। कार्मणे काययोगे च प्रथमं च द्वितीयकम् ॥१८॥ चतुर्थ च समुधातगतकेवल्यपेक्षया।
त्रयोदशं मवेज्जातु समयत्रितयावधि ॥ १९॥ अर्थ-चार मनोयोगों और चार वचनयोगोंमें प्रथमसे लेकर द्वादश तक गुणस्थान होते हैं। सत्य मनोयोग और अनुभय मनोयोग तथा सत्य वचनयोग और अनुभय बचनयोगमें आदिके तेरह गुणस्थान होते हैं। औदारिक मित्रकाययोगमें पहला, दूसरा, चौथा और कपाट समुद्घात गतसयोग केवलीको अपेक्षा तेरहवाँ गुणस्थान होता है ।
औदारिक काययोगमें आदिके तेरह गुणस्थान जानना चाहिये । आहारक और आहारकमिश्र काययोगमें एक छठवां हो गुणस्थान होता है । वैक्रियिक काययोगमें आदिके चार गुणस्थान होते हैं परन्तु वैक्रियिक मिश्र काययोगमें तृतीय गुणस्थान नहीं होता और कामंण काययोगमें पहला, दूसरा, चौथा और समुद्घात केवलीको अपेक्षा तेरहशा गुणस्थान होता है। कार्मण काययोग अधिकसे अधिक तोन समय तक हो रहता है ।। १३-१६॥ आगे वेद, कषाय और ज्ञान मार्गणामें गुणस्थानोंका वर्णन करते हैं
आधानि स्युः सवेदानां नवधामानि भावतः । अभ्यस्त्रीणां तु विजेयं प्रथमात्पञ्चमावधिः ।। २०॥ सकषायस्य जोषस्य बराधामानि सन्ति हि । निष्कषायस्थ बोध्यायेकाशप्रभृतीनि ॥ २१ ॥ मतिश्रुतावधिज्ञाने चतुर्थाद्वादशावधिम् । मनःपर्ययबोधे तु षष्टाव द्वादशावधिम् ॥ २२ ॥ केवले च भवेवन्य युगलं गुण धामकम् । कुमतो कुश्रुते पाने विभङ्गे च नियोगतः ।। २३ ॥
प्रथम द्वितयं ज्ञेयं गुणस्थानं शरीरिणाम् । अर्थ--भाव वेदकी अपेक्षा सवेद जीवोंके आदिके नौ गुणस्थान होते हैं परन्तु द्रव्य स्त्रियोंके प्रथमसे लेकर पञ्चम तक गुणस्थान होते हैं। कषाय सहित जीवोंके प्रारम्भके दश गुणस्थान होते हैं और कषाय रहित जीवोंके एकादश आदि गुणस्यान होते हैं । मतिज्ञान, ध्रुतज्ञान