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सप्तम प्रकाया
अकाले सूत्रपाठो हि निषिद्धः परमागमे ।
कथाप्रस्थावि पाठस्तु नो निषिद्धः कदाचन ।। ३२ ।। अर्थ-जिनवाणीके ज्ञाता विद्वानोंने जिनागममें कालाचार आदिके भेदसं सम्यग्ज्ञानके आठ अङग कहे हैं। स्वाध्यायके लिये उद्यत पुरुषोंको सबसे पहले काल शुद्धि करना चाहिये । कालशुद्धि हो कालाचार कहलाता है। पूर्वाल्ल, अपरा, प्रदोष काल और अपररात्रिक इन चार कालोंमें स्वाध्याय किया जाता है। ___ भावार्थ-सूर्योदय के दो घड़ी बादसे लेकर मध्याह्नसे दो घड़ी पूर्व तकका काल पूर्वाज कहलाता है। मध्याह्नके दो घड़ो बादसे लेकर सूर्यास्तके दो घड़ो पूर्वतकका काल अपराह्न कहलाता है। सूर्यास्तके दो घड़ो बादसे लेकर मध्यरात्रिके दो घड़ो पूर्वतकका काल प्रदोष कहलाता है और मध्यरात्रि के दो घड़ो पूर्वस लेकर सूर्योदयके दो घड़ो पूर्व तकका काल विरात्रि कहलाता है। इन चारों कालोंमें स्वाध्याय करना चाहिये । इनके बोचका जो चार-चार घडोका सन्धिकाल है वह स्वाध्यायके लिये वर्जित है।
इसके सिवाय भूकम्प, भूविदारण--पृथ्वोका फा ना, सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, उल्कापात, प्रदोष-सूर्योदय और मुयोरूपका समय, दिशादाह-दिशाओं में लालप्रकाश फैलना, देश विप्लव, क्षेमका अन्य काल और राजा आदिक प्रधान पुरुषका मरण होना, इन गमयोंमें परमागम समूहका स्वाध्याय नहीं करना चाहिये । किन्तु बरजनोंने स्तोत्र आदिके पाठका निषेध नहीं किया है। गए रों, श्रुतकेवलियों, प्रत्येक बुद्धिधारियों तथा अभिन्न दशपूर्वके प. आचार्योंके द्वारा कथित शास्त्र सूत्र कहलाता है। अकालमें सूत्र पाठका निषेध परमागममें बताया गया है परन्तु कथा ग्रन्थ आदिक पाठका निषेध नहीं है। तात्पर्य यह है कि क्षोभके समय स्वाध्याय करने वाले एवं स्वाध्याय सुनने वाले पुरुषोंका चित्त स्थिर नहीं रहता। अतः महत्त्वपूर्ण ग्रन्थोंका भाव अन्यथा ग्रहण किये जाने की सम्भावनास स्वाध्यायका निषेध किया गया है। उपर्युक्त स्वाध्यायके चार कालोंके बीच जो चार-चार घड़ीका अन्तराल है वह सामायिक तथा ध्यानका काल है अतः उस समय स्वाध्यायका निषेध किया गया है ॥ २५-३२ ।। १. सुत्तं गणहर कहियं तदेव पत्तेपबुद्धिकहियं च ।
सुदकेदलिगा कहिये अभिगदलब्ध कहिद ॥ मूलाचार, २७७